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१२३. पत्र : सहायक गृह-सचिवको

[जोहानिसबर्ग]
सितम्बर, ३, १९१३

[महोदय,]

मैंने आपको आज टेलीफोनसे सूचित किया था कि मैं कल फीनिक्स जा रहा हूँ । किन्तु वहाँके लिए रवाना होनेसे पहले मैं, जिस उत्सुकता और अधीरताके साथ मेरे कई साथी कार्यकर्ता किसी अन्तिम उत्तरकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, उसकी ओर जनरल स्मट्सका ध्यान आकर्षित करता चाहता हूँ। वैसे तो पहला पत्र लिखने के लिए ही वे मुझे दोषी ठहराते हैं। उनकी अधीरता स्वाभाविक है। हमारे सारे काम बन्द पड़े हैं। कई लोगोंको इस दुविधा के कारण नौकरी के अच्छे-अच्छे प्रस्ताव भी अस्वीकार करने पड़े हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि जनरल स्मट्सके सम्मुख जो अनेक महत्वपूर्ण कार्य हैं, उनमें इसको भी उचित स्थान दिया जायेगा। यदि अगले मंगलवार तक अर्थात् आपके दिये हुए दिन तक कोई निश्चित उत्तर प्राप्त न हो तो क्या श्री जॉर्जेसके पत्रको अन्तिम उत्तर माना जा सकता है ? मैं यह उल्लेख भी कर दूं कि यदि बातचीत विफल हो जाती है तो संघर्ष और अधिक व्यापक प्रश्नको लेकर आरम्भ किया जायेगा। समझौता करनेके उद्देश्यसे और यह दिखानेकी गरजसे कि हम संघर्षको फिर आरम्भ करने के लिए व्याकुल नहीं है, मेरे पत्रों में कई महत्त्वपूर्ण बातें छोड़ दी गई है।

मुझे आशा है कि यह पत्र जिस भावनासे लिखा गया है उसे जनरल स्मट्स ठीक मानेंगे।

[आपका,]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-९-१९१३

'१२४. लॉर्ड सभाको बहस

लॉर्ड ऍटहिलने संघके प्रवासी कानूनपर लॉर्ड सभामें जिस बहसका' आरंभ किया था, अब हमें उसका पूरा पाठ मिल गया है। यह बहस एकाधिक कारणोंसे स्मरणीय है। इसमें मद्रासके भूतपूर्व गवर्नर तथा कार्यवाहक वाइसराय लॉर्ड ऍटहिल, बम्बईके भूतपूर्व गवर्नर लॉर्ड सिडेनहम, और भारतके भूतपूर्व वाइसराय लॉर्ड कर्जनने बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कहीं। लॉर्ड सिडेनहम तो अभी हाल में ही भारतसे लौटे है और इसलिए वे इस

१. लोर्ड ऍम्टहिलका भाषण इंडियन ओपिनियन के २०-९-१९१३ और उसके बादके चार अंकोंमें क्रमश: प्रकाशित हुआ था।

२. जॉर्ज सिडेनहम क्लार्क (१८४८-१९३३); ब्रिटिश सेनानी और प्रशासक; सैनिक मामलों,खास तौरपर किलेबन्दीके विशेषज्ञ; बम्बईके गवर्नर, (१९०७-१३) ।