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पत्र: एशियाई-पंजीयकको


उपरान्त वह स्त्री यहाँ रह सकेगी या नहीं, यह प्रश्न दूसरा है। इस बातका निपटारा उपर्युक्त अदालती निर्णय नहीं करता। और विवाह इस प्रकार फिर किया जा सकता है या नहीं, यह एक भिन्न और महत्वपूर्ण प्रश्न है। जो व्यक्ति किसी स्त्रीसे एक बार विवाह कर चुकनेपर इस आशयका बयान देता है कि उसके साथ उसका विवाह नहीं हुआ है, और वह पुनः उसके साथ शादी करता है तो उसका यह कृत्य यह सिद्ध करता है कि उसे अपने मानापमानकी परवाह नहीं है और इसलिए उसका यह काम कायरतापूर्ण है। गरीब व्यक्तियोंको धीरज रखकर यह समझना चाहिए कि इस मामलेका निपटारा किसी-न-किसी दिन अवश्य होगा। इस बीच यदि उनको न्याय न मिले तो उनके लिए श्रेपस्कर मार्ग वही है कि वे अपनी पत्नियोंको भारतमें ही रखें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-८-१९१३

१२२. पत्र: एशियाई-पंजीयकको

[जोहानिसबर्ग,
सितम्बर १, १९१३ के बाद]

एशियाई-पंजीयक

प्रिटोरिया

महोदय,

संदर्भ: पुरुषोत्तम मावजी, १७१११

मेरे गत मासकी १० तारीखके पत्रके उत्तरमें भेजा गया आपका उसी मासकी १५ तारीखका तार । मुझे खेद है कि उत्तर देने में विलम्ब हुआ। उत्तर देनेसे पहले मुझे पूछताछ करनी पड़ी, और फिर देखा कि मुझे जो सूचना दी गई है वह भ्रामक है। चूंकि पुरुषोत्तम मावजी भारत चले गये हैं, इसलिए यह निश्चय करना कठिन है कि वास्तवमे हुआ क्या था। किन्तु अब अनुमान किया जाता है कि पुरुषोत्तम मावजीने ट्रान्सवालके प्रमाणपत्रका नहीं बल्कि नेटालके प्रमाणपत्रका उल्लेख किया था।

आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५८५४) की फोटो-नकलसे।

१. मूल पत्रमें “१५" तारीख पड़ी है जो निश्चय ही भूल है । देखिए " पत्र : प्रवासी अधिकारीको”, पृष्ठ १५४ ।