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११९. भारतके पितामह

पाठकोंको याद दिलानेकी जरूरत नहीं कि आगामी गुरुवार, ४ सितम्बरको भारतके पितामहकी नवासीवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है। भारतके इस महानतम पुत्रके प्रति पुन: अपनी शुभकामनाएँ प्रकट करते हुए हमें हर्ष होता है। श्री दादाभाई नौरोजी जितनी सार्वजनिक सेवा कर चुके हैं वह एक व्यक्तिके लिहाजसे बहुत ज्यादा है; और इस सेवाके बाद अब वे विश्राम ले रहे हैं। अपने देशबन्धुओंके हितमें बीते उनके कर्मठ जीवनकी स्मृति-मात्रसे हमें अपने छोटे-छोटे कामोंमें निरन्तर उत्साह प्राप्त होता रहता है। ऐसे ही व्यक्तियोंके जीवनसे कोई राष्ट्र समृद्ध होता है-भौतिक दृष्टिसे नहीं, बल्कि उन अन्य सब बातोंकी दृष्टिसे जिनसे राष्ट्रीय सम्मान और कर्तव्यनिष्ठाका निर्माण होता है। जो लोग उन्हें बधाईका सन्देश भेजना चाहें, लेकिन उनका तारका पता न जानते हों, वे "दादाभाई नौरोजी, वरसोवा, बम्बई" के पतेपर सन्देश भेजें। हम इस अंकके साथ एक विशेष परिशिष्ट भी दे रहे हैं, जिसमें दादाभाईका चित्र दिया गया है।

[अंग्रजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-८-१९१३

१२०. और भी मित्र चल बसे

जान पड़ता है कि विधिका यही विधान है कि दक्षिण आफ्रिका, एकके बाद एक, शीघ्रताके साथ, अपने सर्वोत्तम व्यक्तियोंको खोता जाये। अभी श्री डोककी मृत्युका समाचार मिला ही था कि रैडके प्रेस्बिटीरियन चर्चके सुविख्यात पादरी डॉ० रॉस और 'नेटाल मयुरी' के लोकप्रिय सम्पादक श्री मिलीगनकी मृत्युकी दुःखद सूचना मिली। डॉ० रॉसने गत वर्ष ही अपने पदसे अवकाश लिया था। वे एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। उन्होंने जोहानिसबर्गके जन-सेवकके रूपमें क्या किया, इस बारेमें हम यहाँ कुछ नहीं कहेंगे। पर हम इस तथ्यका कृतज्ञतापूर्वक उल्लेख किये बिना नहीं रह सकते कि डॉ. रॉसने ट्रान्सवालके भारतीयोंके संघर्षकी जानकारी हासिल की थी और वे श्री हॉस्केन की समितिमें शामिल हुए थे। वे भारतीय समारोहोंमें प्रायः उपस्थित रहते थे और हमारे प्रति स्पष्ट शब्दोंमें अपनी सहानुभूति प्रकट करनेसे कभी झिझकते नहीं थे। हम जानते हैं कि जब सत्याग्रह अपनी चरम सीमापर था तब उन्होंने जनरल स्मट्ससे

१. भारतीयोंके लक्ष्यके प्रति सहानुभूति रखनेवाले यूरोपीयोंकी एक समिति जिसके नेता विधान सभाके सदस्य श्री विलियम हॉस्केन थे। उसने “ब्रिटिश भारतीयोंके संघर्ष में उनका समर्थन करने और उनको न्याय दिलानेका संकल्प किया था; देखिए खण्ड ९, पृष्ठ १३१, ५२३ ।