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-११८. भाषण : शोक-सभामें

[जोहानिसबर्ग
अगस्त २४, १९१३]

श्री गांधीने कहा कि श्री डोकने भारतीय समाजके लिए जो महान् कार्य किया, उसके लिए समाज उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करता है। वे इस समाजके उत्तम मित्रोंमें से एक थे। यह बात प्रत्येक व्यक्तिके सम्बन्धमें नहीं कही जा सकती कि उसके जीवनकी सफलताने मृत्युको आच्छादित कर दिया और उसके लिए मृत्युकी कोई वकत नहीं बची। किन्तु श्री डोकके सम्बन्धमें यह बात निःसन्देह कही जा सकती है। श्री डोककी मृत्युपर दरअसल शोक प्रकट करनेकी जरूरत नहीं है। उनका जीवन पूर्णतः समर्पणका जीवन था। उन्होंने अपना सर्वस्व अपने स्रष्टाके चरणोंपर समर्पित कर दिया था। अब वे पुनः अपने स्रष्टाकी सेवाके लिए स्वगिक दीप्तिसे युक्त, तथा और भी सुन्दर शरीर लेकर उठ खड़े होंगे। किन्तु, श्री डोकको मृत्युपर शोक न हो, इसके लिए हमारे पास उन्हींको जैसी समर्पणको भावना चाहिए। मेरी आत्मा तो शायद देहको चिन्तासे मर गई है, इसलिए मेरे लिए एक ऐसे शरीरी मित्रकी बड़ी आवश्यकता थी। अतः मैं एक सच्चे मित्र और चतुर सलाह देनेवालेके लिए शोक प्रकट करता हूँ। श्री गांधीने अपने एक देशवासी द्वारा अपने ऊपर किये गये आक्रमणका' उल्लेख करते हुए कहा कि सही या गलत, आक्रमणकारीका खयाल था कि मैंने समाजके साथ अन्याय किया है, और इस अन्यायका परिमार्जन, उसके विचारसे, केवल मुझपर आक्रमण करके ही किया जा सकता था। उन्होंने आगे कहा कि :

मैं अपने एक मित्रके कार्यालय में असहाय अवस्थामें पड़ा हुआ था। तभी मैने श्री डोकको अपने पास खड़े देखा। उस अपराह्नमें उन्होंने मुझसे जो शब्द कहे वे इतने मधुर थे कि मुझे अबतक याद है। उनके शब्द कुछ इस प्रकार थे : आप अस्पताल ले जाया जाना पसन्द करेंगे या मेरे घर? मुझे विश्वास है कि मेरी पत्नी और मेरे परिजनोंको आपके मेरे घर चलनेसे बड़ी खुशी होगी और हम सभी आपका कष्ट दूर करनेके लिए यथा-साध्य पूरा प्रयत्न करेंगे। “ मुझे चुनने में तनिक भी आगा-पीछा नहीं करना पड़ा, और मुझे अपने चुनावपर कभी खेद नहीं हुआ। मुझे वह संध्या याद है, जब मेरे अनुरोधपर समस्त परिवारने [ अंग्रेजीका] सुन्दर भजन " लीड काइंडली लाइट गाकर सुनाया था। उस भजनकी ध्वनि में कभी नहीं भूलूंगा, वह मेरे मनसे कभी दूर

१. यह शोक सभा स्मरण प्रार्थना (मेमोरियल सर्विस) सभा थी; प्रार्थना ग्रैहम्सटाउन वैपटिस्ट चर्च, जोहानिसबर्गमें श्री जे०जे० डोकके सम्मानमें की गई थी। श्री डोक इस चर्चके पेस्टर थे। गांधीजी सभामें भाग लेनेके लिए फीनिक्सप्से आये थे । देखिए पिछले शीर्षकका दूसरा अनुच्छेद ।

२. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ९२-९४; और दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २२ ।