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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

मैं देख रहा हूँ कि नेटालमें नये अधिनियमको लेकर मुकदमे शुरू हो गये हैं। कहना पड़ता है कि मैं जिस पत्रका उत्तर दे रहा हूँ उसमें दिये गये आश्वासनसे विवाहके इस मामलेका मेल नहीं बैठता। कारण, कुलसमबीबी, निःसन्देह, दक्षिण आफ्रिकामें अपने पतिकी एकमात्र पत्नी है। मैं नम्रतापूर्वक सुझाव देता हूँ कि यह मुकदमा वापस ले लिया जाये और इस महिलाको मुक्त कर दिया जाये। दूसरे मामले अधिवाससे सम्बन्धित है। जान पड़ता है, सरकारका कहना यह है कि जहाँ तथ्यों या अधिवास प्रमाणपत्रके मालिककी प्रामाणिकताके सम्बन्धमें कोई विवाद न हो, वहाँ भी, यदि वह अपने अधिवासके प्रान्तसे दीर्घ काल तक बाहर रहा हो तो, उसका अधिकार रद कर दिया जाये। यदि सरकार नये अधिनियमकी व्याख्या ऐसी करती है तो उससे लोगोंके वर्तमान तथा प्राप्त अधिकारोंको खतरा है। और यदि इस बारेमें निर्णय भारतीय समाज के विरुद्ध हुआ तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी जो नितान्त असह्य होगी और अस्थायी समझौतेसे तथा माननीय जनरल बोथा और अन्य मन्त्रियोंकी इस घोषणासे भी मेल नहीं खायेगी कि सरकार यहाँ बसी हुई भारतीय आबादीको परेशान करना नहीं चाहती। इसलिए मैं यह सुझाव भी देनेका साहस करता हूँ कि ये मुकदमे उठा लिये जायें। मैंने यह मान लिया है कि आपको इन मुकदमोंका अच्छी तरह पता है। इनकी खबर 'इंडियन ओपिनियन' के इसी अंकमें छापी गई थी।

मैं शीघ्र ही इसके उत्तरकी प्रार्थना करता हूँ।'

आपका,

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-९-१९१३

१. सितम्बर १० को इसका गांधीजीको यह उत्तर मिला था: “मुझे गृह मन्त्रीने आपके २४ अगस्तके पत्रका उत्तर देनेका आदेश दिया है । पहले मुद्दे के सम्बन्धमें, उन्हें खेद है कि उन्हें मेरे उसी महीनेकी १९ तारीखके पत्रमें कही हुई बातोंसे अधिक कुछ नहीं कहना है । दूसरे मुद्दे के सम्बन्धमें कोई अन्य कार्रवाई करनेकी आवश्यकता नहीं है । तीसरे मुद्दे के बारेमें कोई कठिनाई नहीं है, क्योंकि जो भी हलफनामा देना पड़ेगा वह संघमें प्रवेश करनेपर देना पड़ेगा, फ्री स्टेटकी सीमापर नहीं। विवाहके प्रश्नके सम्बन्धमें, वे कोई ऐसा आश्वासन नहीं दे सकते कि अगले अधिवेशनमें आपके द्वारा सुझाये गये ढंगपर विवाह कानून बना दिया जायेगा। स्पष्ट है कि इससे दक्षिण आफ्रिकाके वर्तमान कानूनका समस्त आधार ही बदल जायेगा । आपने किसी भी व्यक्तिकी एकाधिक पल्लियोंको प्रवेश देनेके आश्वासनका जिक किया है। यह बात भी समझमें नहीं आती, क्योंकि मुझे इस विभागसे भेजे गये पत्रों में ऐसी कोई बात नहीं मिलती। क्या आप इसका स्पष्टीकरण कर सकते है ? और आपने डर्बनमें की गई जिन अपीलोंका उल्लेख किया है वे तो प्रत्यक्ष ही अब भी न्यायालयके विचाराधीन है, इसलिए मन्त्री महोदय हस्तक्षेप नहीं कर सकेंगे।"