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पत्र : गृह-सचिवको


भावनाके लिए लड़ रहे हैं; और वह यह है कि इस सम्बन्धमें केपके पुराने विधान-मण्डलने जो उदार और उचित दृष्टिकोण अपनाया था उसे यथावत् रखना चाहिए। और मुझे लगता है कि मुझे उस दृष्टिकोणकी ओर जनरल स्मट्सका ध्यान फिर खींचना चाहिए। मैं पहले ही यह निवेदन कर चुका हूँ कि केपके सदस्योंने इस मुद्देपर इसलिए जोर दिया था कि माननीय श्री फिशरने, यदि धृष्टता न समझें तो कहूँ कि तथ्योंको जाने बिना ही, यह धारणा बना रखी थी कि दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न भारतीय केपमें बहुत बड़ी संख्यामें आ रहे हैं। मैं देखता हूँ कि आपके पत्रसे यह भाव झलकता है, मानो में प्रान्तीय सीमाओंको बिलकुल समाप्त कर देनेकी मांग कर रहा हूँ। यद्यपि यह एक उचित इच्छा होगी; किन्तु मैंने इसकी मांग नहीं की है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि यह अस्थायी समझौतेका अंग नहीं है।

मुझे प्रसन्नता है कि दूसरे मुद्देके बारे में सरकारी व्याख्या भारतीयोंकी व्याख्याके समान ही है।

फ्री स्टेटकी कठिनाईके सम्बन्धमें मैंने जो मुद्दा उठाया है, उसे समझा नहीं गया। मैने यह बात केवल कहनेके लिए ही नहीं कही है कि इस निर्योग्यताकी ओर प्रवेशाथियोंका ध्यान खींचा जाये। मैंने तो यह निवेदन किया है कि अधिनियमकी भाषासे यह मालूम होता है कि उक्त ज्ञापनका फ्री स्टेटकी सीमापर लिया जाना आवश्यक है। यदि सरकार भी अधिनियमकी ऐसी ही व्याख्या करती हो तो फ्री स्टेटकी कठिनाई कोई कानूनी फेरफार किये बिना दूर की जा सकती है। फ्री स्टेटके लोगोंकी चिन्ता दूर करनेके उद्देश्यसे मैंने यह सुझाव दिया था कि इस प्रान्तके समुद्र-तटपर पहुँचनेके प्रथम बन्दरगाहपर प्रवेशार्थियोंको दिये जानेवाले ज्ञापनके प्रारूपपर ही फ्री स्टेटकी निर्योग्यताएँ सूचित कर दी जायें। यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि मैंने यह मान लिया है कि नये अधिनियमके अन्तर्गत किसी भी भारतीयको कानूनी तौरपर फ्री स्टेटमें प्रवेश करनेकी अनुमति दी जा सकती है।

चौथे मुद्दे के बारेमें निवेदन है कि दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीयोंके जो विवाह-संस्कार इस संघमें सम्पन्न हो चुके हैं या भविष्यमें होंगे उनकी वैधताके प्रश्नका व्यावहारिक महत्त्व बहुत अधिक है। इस अत्यन्त जटिल समस्याके समाधानके लिए यह आश्वासन देना आवश्यक है कि आगामी अधिवेशनमें इस उद्देश्यसे एक विधेयक प्रस्तुत किया जायेगा। बहुपत्नीक प्रथाके सम्बन्धमें मैंने यह नहीं कहा है कि बहुपत्नीक विवाहोंको सामान्य रूपसे मान्य कर लिया जाये। मेरा कथन तो केवल यही है कि अबतक जिस प्रथाका अनुगमन होता रहा है उसको जारी रखते हुए अभी जिन अधिवासी भारतीयोंके एकाधिक पत्नियाँ हैं, उनकी सभी पत्नियोंको यहाँ प्रवेशकी अनुमति होनी चाहिए। और आपके साथ किये गये पत्र-व्यवहारमें मैंने जिस पत्रका हवाला दिया है, उसमें यही आश्वासन दिया गया था। ऐसी पत्नियोंकी संख्या इस समय आसानीसे मालूम की जा सकती है और फिर यह छूट इस प्रकार प्राप्त संख्या तक ही सीमित रह सकती है।

१. देखिए “ पत्र : गृह-सचिव को", पृष्ठ ११९-२० ।