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स्वर्गीय रेवरेंड जोजेफ डोक


परवाह न करते हुए हमारे सम्पादकीय विभागका निदेशन अपने हाथमें लिया था। और उस काल में उनके सम्पर्क में आनेवाले सभी लोग जानते है कि वे कितने सतर्क कितने सचेष्ट, कितने सज्जन और कितने सहनशील व्यक्ति थे। हम, भारतीय समाजके लोग, उनके कुटुम्ब तथा उनके धर्म-भाइयोंके साथ मिलकर एक ऐसे श्रेष्ठ पुरुषके इस क्षणभंगुर संसारसे उठ जानेपर शोक मना रहे हैं। हम श्रीमती डोक तथा उनके परिवारके प्रति सादर अपनी समवेदना प्रकट करते हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-८-१९१३

११६. स्वर्गीय रेवरेंड जोजेफ डोक

इस उदार और महान् व्यक्तिका देहावसान हो गया है, यह वाक्य लिखते समय भी लेखककी लेखनी काँप रही है और उसके हृदय में अनेक प्रकारके विचार उठ रहे हैं। मनुष्यके रूपमें श्री डोक एक श्रेष्ठ मनुष्य थे, और यदि उन्हें अंग्रेजके रूपमें देखें तो वे एक ऐसे अंग्रेज थे कि यदि सभी अंग्रेज उनके जैसे हो जाये तो भारतीयों और अंग्रेजोंके बीच जरा भी कटुता रहे। पादरीके रूपमें वे ईश्वरपर विश्वास रखनेवाले व्यक्ति थे। और हालांकि अपने धर्म में उनकी अडिग आस्था थी, फिर भी वे दूसरे धर्मोकी निन्दा नहीं करते थे। इतना ही नहीं, वे अन्य धर्मोके महत्त्वको भी जाननेका प्रयत्न किया करते थे। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय समाजकी श्री डोकने जो महान् सेवा की है उसके लिए भारतीय समाज उन्हें सदा याद रखेगा। १९०७ में जब सत्याग्रहका संघर्ष जोरोंसे चल रहा था, श्री डोक न्यूजीलैंडसे ट्रान्सवालमें आये ही आये थे। किन्तु तभीसे वे भारतीय प्रश्नमें बहुत दिलचस्पी लेने लगे और अपने जीवन के अन्त तक उन्होंने भारतीयोंके प्रति अपनी सहायता जारी रखी। हमारी समस्याका जितना स्पष्ट ज्ञान श्री डोकको था उतना एक या दो अंग्रेजोंको छोड़कर अन्य किसी अंग्रेज या किसी भारतीयको शायद ही हो। उन्होंने भारतीय समस्यासे सम्बन्धित सब कानूनों और प्रलेखोंका अध्ययन कर लिया था; और वे इस विषयपर किसी भी व्यक्तिसे बहस करने में समर्थ थे। उन्होंने भारतीयोंके प्रति अपनी सहानुभतिको कभी नहीं छिपाया। उनके यहाँ प्रत्येक भारतीय के साथ- चाहे वह अमीर हो या गरीब--समान रूपसे व्यवहार किया जाता था। उनकी अनेक इच्छाओंमें एक यह थी कि वे हमारी समस्याका सन्तोषजनक हल देखें; इसकी प्राप्तिके लिए वे स्वयं हर प्रकारका दुःख उठाने के लिए तैयार रहा करते थे। ऐसे शुभचिन्तक मित्रकी मृत्युपर कौन शोक न करेगा? हम श्री डोकको ढालके रूप में जानते आये हैं। वह ढाल अब जाती रही है। हमारा कर्तव्य स्पष्ट है। मित्रकी मृत्युके बाद हमें उसके नातेदारोंको नहीं भूलना चाहिए। हमें चाहिए कि हम उनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करें। लेकिन हमारा सबसे बड़ा फर्ज तो यह है कि श्री डोकने हम लोगोंको जैसा मान रखा था हम वैसे बनें, और वैसे रहें। श्री डोकका खयाल था कि हम लोग सच्चे