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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सामान्य औषधियां दी गई पर चूंकि उन्हें बुखार-जैसा नहीं था, इसलिए निष्कर्ष निकाला गया कि उनका रोग ज्वरके कारण नहीं है। डॉक्टर बुलाया गया, जिसने उन्हें तुरन्त उमतली अस्पताल ले चलनेका आदेश दिया। वे "मचिल्ला" द्वारा वहाँ ले जाये गये। वहाँ वे अच्छेसे-अच्छे डॉक्टरों और नसोंकी देख-रेखमे रहे। १२ तारीखको श्री डोकके कुटुम्बको एक तार भेजा गया, जिसमें कहा गया था कि उनपर प्लूरिसीका मामूली हमला हुआ है, पर उसमें कोई खतरा नहीं है और किसीको आनेकी जरूरत नहीं है। शुक्रवार १५ की शामको श्रीमती डोकको एक दूसरा तार मिला कि श्री डोक आंत्र ज्वर (इंटेरिक) से सख्त बीमार है। श्रीमती डोकने तुरन्त शनिवारको रातकी ट्रेनसे जानेकी तैयारी की, किन्तु शनिवारकी सुबह फिर तार मिला कि पिछली शामको ७ बजे श्री डोक चल बसे। दूरीके कारण उनका पार्थिव शरीर जोहानिसबर्ग नहीं लाया गया। पिछले रविवारको शामके ४ बजे उमतलीमें ही उनका अन्तिम संस्कार कर दिया गया; और जोहानिसबर्ग के बैपटिस्ट गिरजेमें ठीक उसी समय प्रार्थना की गई।

रैडमें रहते समय, श्री डोकका अनेक धार्मिक संस्थाओंसे विशेष सम्बन्ध था।

अपनी विधवा पत्नीके अतिरिक्त श्री डोक अपने पीछे तीन पुत्र-- विली, क्लीमेंट और कम्बर--और एक लड़की, ऑलिव, छोड़ गये हैं। सबसे बड़ा लड़का विली अमेरिकामें मेडिकल मिशनरीके रूपमें शिक्षा ग्रहण कर रहा है।

[ अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन २३-८-१९१३

११५. स्वर्गीय श्री डोक

श्री जोजेफ जे० डोककी मृत्युसे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजने अपने सबसे सच्चे मित्रों में से एकको खो दिया है। यद्यपि श्री डोकका सामान्य सार्वजनिक कार्य काफी विस्तृत और ठोस था, किन्तु उसका विवरण देने के लिए यह उपयुक्त स्थान नहीं है। फिर भी हम दिवंगत आत्माको अपनी तुच्छ श्रद्धांजलि भेंट करते समय उन्होंने जो महान् कार्य हमारे लिए किया, उसका विचार किये बिना नहीं रह सकते। श्री डोकने जबसे इस कामको हाथमें लिया, उन्होंने अपना तन-मन उसमें लगा दिया और कभी कोई शिथिलता नहीं आने दी। श्री डोकका स्वभाव था कि जिस विषयको वे हाथमें लेते उसपर पूरा अधिकार प्राप्त कर लेते थे। इसलिए इस विषयपर भी उनकी गिनती दक्षिण आफ्रिकाके सबसे अधिक जानकार लोगोंमें होने लगी थी। वे सत्याग्रहियोंको इतना चाहते थे, मानो वे उनके अपने धर्म-भाई हों। गरीबसे-गरीब भारतीयके लिए भी इस पुण्यात्मा अंग्रेजका द्वार खुला रहता था। हमारा समाज जिस संकट-कालसे गुजरा है, उसमें वे बराबर अपनी कलम और वाणीका उपयोग हमारे पक्षमें करते रहे। वे सत्याग्रही बन्दियोंको जेलमें जाकर देखनेका कोई भी अवसर हाथसे नहीं जाने देते थे। उन्होंने समाज तथा इस पत्रके इतिहासके एक बड़े गाढ़े समयमें अपने हृदयकी विशालताका परिचय देते हुए और अपनी बड़ी-बड़ी असुविधाओंकी