फिलिस्तीन और भारतकी यात्रापर गये। १८९४में श्री डोक अपने कुटुम्बके साथ न्यूजीलैंड चले गये। वहाँ वे क्राइस्टचर्चके आक्सफोर्ड टेरेस बैपटिस्ट गिरजेके धर्माधिकारी (मिनिस्टर) के रूपमें साढ़े सात साल रहे और १९०२में इंग्लैंड लौटे। पादरीके रूपमें अपने कर्तव्योंके अलावा श्री डोक चीनियोंके लिए एक कक्षा भी चलाते थे जिसकी बड़ी प्रशंसा हुई और जिसे उनके उत्तराधिकारी अभीतक चला रहे हैं।
१९०३के अन्तिम दिनोंमें श्री डोकको ग्रैहम्सटाउन बैपटिस्ट गिरजेका भार संभालनेको कहा गया, इसलिए उन्होंने पुन: दक्षिण आफ्रिकामें अपना काम शुरू किया। अहम्सटाउनमें चार साल काम करने के बाद वे सेन्ट्रल बैपटिस्ट गिरजेके धर्माधिकारी होकर रैड आये । मृत्युपर्यन्त वे इस पदपर रहे। जीवन-भर, विशेषतः अपने भाईकी मृत्युके बादसे, श्री डोककी महत्त्वाकांक्षा धर्मप्रचारका काम करनेकी थी, किन्तु स्वास्थ्य तथा कौटुम्बिक परिस्थितियोंके कारण उनका मार्ग अवरुद्ध रहा; जीवनके अन्तिम दिनोंमें जरूर ऐसा
लगा कि वह खुल गया है। अपने पुत्र क्लीमेंटके साथ उन्होंने पश्चिमोत्तर रोडेशियाके एक एकान्त स्थलमें स्थित मिशन स्टेशनकी यात्रापर जानेका निश्चय किया। यह स्थान कांगोकी सीमाके बिलकुल निकट है। २ जुलाईको वे दोनों इस यात्रापर हुए। इस यात्रामें करीब छ: सप्ताह लगते । दक्षिण आफ्रिकाकी बैपटिस्ट मिशन सोसाइटी द्वारा उन्हें उमतलीके निकट स्थित एक दूसरे मिशन स्टेशनको भी जाकर देखनेको कहा गया। वे लोग उसकी बाबत कुछ ब्योरा चाहते थे इसलिए उन्होंने श्री डोककी रोडेशिया यात्राका लाभ उठा लेना चाहा। श्री डोकने एनडला जिलेके प्रवासका खूब
आनन्द लिया और उनका स्वास्थ्य बराबर अच्छा रहा। पर उनके पाँवमें छालोंके कारण तकलीफ हो गई। लगभग ३५० मीलकी दूरी पार करनी थी और इसलिए उन्होंने ज्यादातर मार्ग "मचिल्ला" --एक पालकी या बहँगी-जैसी चीज, जिसे दो वतनी कंधोंपर ढोते है- --द्वारा पार किया। किन्तु कठिनाइयोंके बावजूद वे बहुत
खुश थे और उनको अपने मिशनकी सफलताकी पूरी-पूरी आशा थी। एक दुभाषियेकी सहायतासे उन्होंने बहुत-से गाँवोंमें व्याख्यान दिया। यात्रासे वापस आनेपर भाषण देने के विचारसे उन्होंने बहुत-कुछ लिखा और बहुत सारे फोटो-चित्र भी खींचे। वे ४ अगस्तको ब्रोकेन हिल पहुँचे और ७ अगस्तको बुलावायो नामक स्थानपर अपने पुत्रसे अलग हुए, क्योंकि उसे व्यापारिक मामलोंको देखने के लिए घर बुलाया गया था। बुलावायोमें चन्द दिन रुकने और प्रतीक्षा करने के बाद श्री डोक उमतलीकी ओर चले और ९
तारीखकी सुबह अपनी ट्रेन-यात्राके अन्तिम बिन्दुपर पहुँच गये। वहाँ रेवरेंड वूडहाउससे उनकी भेंट हुई और दिनका अधिकांश भाग मिशनरी मामलोंपर विचार-विनिमय करनेमें व्यतीत हुआ। तीसरे पहर उनका दल श्री वेबर नामक एक मित्रके घर पहुंचा। मित्र कस्बे से बाहर गये हुए थे। श्री डोक बहुत अस्वस्थ अनुभव कर रहे थे इस
कारण वे लोग रातको वहीं रुक गये। दूसरे दिन सुबह, सूर्योदयके पहले ही, श्री डोक उठे, पर उन्हें लगा कि वे बहुत अधिक अस्वस्थ है। इसलिए उन्होंने मिशन स्टेशन जाने का विचार बिलकुल त्याग दिया। श्री डोकने बताया कि उनकी पीठमें भयंकर पीड़ा है, और उन्हें उसके कारण फिर बिस्तरेपर लेट जाना पड़ा। उन्हें ज्वरकी