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स्वर्गीय श्री जोजेफ जे० डोक


सम्बन्धका दावा नहीं किया। उनके लिए सचमुच प्रत्येक मनुष्य मित्र और बन्धु था। मृत्युके समय उनके आसपास केवल वे ही लोग थे जो उन्हीं दिनों उनके सम्पर्कमें आये थे। उनका जीवन, मानो, कर्मयोगका उपदेश था। तत्परताके साथ अपना कर्तव्य करते हुए उन्होंने शरीर छोड़ा। हमें उनके जीवनसे सभी मनुष्योंसे प्रेम करने की सीख मिलती है। उन्होंने अपने प्रेमपूर्ण कार्यके लिए नये क्षेत्रोंकी खोज करते हुए देह-त्याग किया। और जिस प्रकार वे [भेद-भाव माने बिना] प्रेम करते थे उसी प्रकार आज उनकी मृत्युपर न केवल उनके सम्प्रदायके यूरोपीय सज्जन, न केवल अंग्रेज, बल्कि बहुत-से वतनी, चीनी तथा भारतीय मित्र भी शोक मना रहे हैं। जहाँ धार्मिक पुरुष भी रंगके प्रति स्थानीय पूर्वग्रहसे मुक्त नहीं है, वहाँ श्री डोक जाति, रंग या धर्मके भेदको न माननेवाले चन्द व्यक्तियोंमें से थे। मरकर भी श्री डोक उन सब लोगोंके हृदयमें अपने प्रेम और उदारताके कार्योंसे जीवित है, जिन्हें उनके सम्पर्कमें आनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ।

श्री डोककी शक्ति अक्षय थी और कार्यक्षेत्र अनेक । धर्मोपदेशके अपने क्षेत्रमें वे श्रेष्ठ वक्ता थे और उनकी लगन सच्ची थी। वे कोई ऐसी बात नहीं कहते थे जिसे वे स्वयं न मानते हों। वे आचरणके किसी ऐसे नियमका अनुगमन करनेकी सलाह नहीं देते थे जिसके लिए वे खुद मरनेको तैयार न हों। इसीलिए उनके उपदेशका प्रभाव पड़ता था। वे एक योग्य लेखक थे। उन्होंने अपने पितामहके संस्मरण लिखे थे। वे पत्रिकाओं में लिखते रहते थे। उन्होंने 'ऐन इंडियन पेट्रियट इन साउथ आफ्रिका' (दक्षिण आफ्रिकामें एक भारतीय देशभक्त) नामसे एक पुस्तक लिखी जो भारतीय सत्याग्रह आन्दोलनकी कथाका लोकप्रिय इतिहास है। लॉर्ड ऍम्टहिलने इसकी अत्यन्त प्रशंसात्मक भूमिका लिखी। श्री डोकके लिए यह कार्य विशुद्ध प्रेम-भावनासे किया गया निष्काम कर्म था। भारतीयोंके उद्देश्य में उनका विश्वास था और उन्होंने जिन विभिन्न रूपोंमें इसकी पूर्तिमें मदद पहुँचाई, यह पुस्तक भी उनमें से एक थी। अभी कुछ ही दिन पहले उनकी किताब 'दी सीक्रेट सिटी' (रहस्य नगरी) कारूंका एक रोमांस-- छपी थी। यह पुस्तक कल्पना-प्रसूत साहित्यका एक अद्भुत उदाहरण है। इस किताबका दूसरा संस्करण हो चुका है, और वह डच भाषामें अनूदित भी हुई है। वे सत्याग्रहके भारतीय आन्दोलनसे इतने प्रभावित हुए थे कि इन दिनों आचार-संहिताके रूपमें सत्याग्रहपर एक विस्तृत पुस्तक लिखने में लगे हुए थे। इसे लिखनेके लिए इस विषयसे सम्बन्धित बहुत-सी पुस्तकोंका उन्होंने विशेष अध्ययन भी किया था।

वे कलाकार भी साधारण कोटिके नहीं थे। उनके बनाये कुछ चित्र तो संग्रहणीय है। उन्होंने न्यूजीलैंडके एक समाचारपत्रके लिए जो अनेक व्यंग-चित्र बनाये थे उनमें उनका अदम्य विनोदी स्वभाव देखा जा सकता है।

श्री डोक थे तो क्षीणकाय किन्तु उनका मन वज्रोपम था। उनके जबड़ोंसे उनकी दृढ़ता व्यक्त होती थी। वे किसी व्यक्तिसे नहीं डरते थे; क्योंकि वे ईश्वरसे डरते थे। अपने धर्म में उनका अत्यन्त प्रबल विश्वास था, परन्तु वे दुनियाके सभी बड़े धर्मोंका आदर करते थे। वे महज जबानी जमाखर्चवाली ईसाइयतको नापसन्द करते थे; उनका मत था कि हृदयगत ईसाइयतके द्वारा ही मोक्ष प्राप्त करना सम्भव है।

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