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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निर्धारित सभी काम रोजके-रोज पूरे कर डालनेकी आदत बनाओ। हरएक कार्य सोच-विचारकर, समझदारीके साथ करना चाहिए। श्री रिचके पूछनेपर उसी समय तुम्हें अपनी इच्छाके अनुसार उचित उत्तर देना चाहिए था। अब जब तुम्हारा मन स्थिर हो जाये और कार्यक्रममें नियमितता आ जाये तब किसी दिन शामके समय एक-दो घंटेके लिए उनके पास हो आना। अगले हफ्तेके दो-चार दिन बीतने तक न जाना ज्यादा ठीक रहेगा।

गणितके कुछ सवाल हर दिन करनेके नियमका पालन करना। हमने जितने घंटे रखे हैं उनमें गणितके सवालोंका...।' और उसका समावेश आरोग्य सम्बन्धी पुस्तिकाकी विषय-सूचीमें हो सकेगा।

मुझे प्रतिदिन, रविवारके दिन भी, नियमपूर्वक पत्र लिखते रहना और अपने मनमें आये हुए विचारोंकी सूचना देना।

दूसरोंका भला करने में सदा उत्साह रखना। पिछली रात तुम्हें तुरन्त लालटेन लेकर जानकी बात सूझनी थी। आये हुए मेहमानका आदर-सत्कार तत्परता और प्रेमके साथ करना चाहिए। ठंड या धूपसे शरीरकी रक्षा करते रहना; किन्तु उसका कष्ट न मानना।

वहाँ हमारा चमड़ेका बटुआ रह गया है-वही जो श्री कैलेनबैक ले गये थे। कुछ टोकरियां भी हैं। इन सब चीजोंको सँभालकर रखना; वे हमारे काम की हैं।

गेहूँ तो है ही, इसलिए रोटियां बनाने में पहले उसे पीसकर उसका उपयोग करना। बादमें आटा मॅगाना ज्यादा ठीक रहेगा; इस आटेकी रोटी [भी] सामान्यत: ठीक रहती है।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० १०१) से। सौजन्य : सुशीलाबेन गांधी

११४. स्वर्गीय श्री जोजेफ जे० डोक

श्री डोक अब नहीं रहे। यह बड़ा भयानक विचार है। अभी उसी दिन तो मित्रोंने उन्हें विदा दी थी और वे मनमें आशा और उत्साह लेकर कांगोके पास रोडेशियाके पश्चिमोत्तर सीमावर्ती क्षेत्रके लिए रवाना हुए थे और अब वे ही परमगतिको प्राप्त हो गये है। उन्होंने इस नश्वर शरीरका त्याग उस समय किया जब उनके निकट उनका कोई भी सम्बन्धी नहीं था। यहाँतक कि अपने लड़के क्लीमेंटको भी, जो उनके साथ गया था, उन्होंने वापस लौटा दिया था। पर श्री डोककी ऐसी मृत्युमें हमें उनके जीवनका सार मिल जाता है। उन्होंने किसीके साथ अपने अनन्य

१. यहाँ पत्रके दो पृष्ठ नहीं मिलते।

२. यह " इंडियन ओपिनियनके लिए विशेष रूपसे लिखित संस्मरण" शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था।