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पत्र : मणिलाल गांधीको


अग्राह्यको ग्रहण करने में, जिसके कान न सुनने योग्यको सुनने में, जिसकी आँखें अदर्शनीयको देखने में और जिसकी नाक न सूंघने योग्यको सूंघनेमें प्रवृत्त रहते हैं, ऐसे शरीरको तो नरकसे भी बदतर मानना चाहिए। नरकको तो सभी नरक मानते हैं; किन्तु या देहका उपयोग नरककी तरह किया जाता है, फिर भी हम से स्वर्ग ही मानते रहते है। शरीरके सम्बन्धमें ऐसा कुछ राक्षसी दम्भ या ढोंग चला आ रहा है। पाखानेको पाखाना समझकर उसका उपयोग समझा जा सकता है परन्तु यदि महलका उपयोग पाखानेकी तरह किया जाये तो विपरीत परिणाम होगा ही। अतः यदि शरीर शैतानके कब्जे में हो तो उसके स्वास्थ्यकी कामना करनेकी अपेक्षा उसके नाशकी इच्छा करना ही हितकर है।

स्वास्थ्यके इन प्रकरणोंके द्वारा यह बतलानेका प्रयत्न किया गया है कि ईश्वरीय नियमोंका पालन करनेसे ही शरीर नीरोग रह सकता है। शैतानके नियमोंके वशीभूत होकर शरीरको कभी स्वास्थ्य नहीं मिल सकता। जहाँ सच्चा स्वास्थ्य है, वहीं सच्चा सुख है और सच्चा स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए हमें अपनी स्वादेन्द्रिय जीभपर विजय प्राप्त करनी ही चाहिए। यदि इतना-भर हम कर पायें तो दूसरी विषयन्द्रियाँ स्वयं ही काबूमें आ जायें। जिसने अपनी इन्द्रियोंको अपने वशमें कर लिया है, वह सारे संसारको वशमें कर सकता है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति ईश्वरका वारिस, उसका अंश बन जाता है। न राम रामायण में है और 7 कृष्ण 'गीता' में, खुदा भी 'कुरान में नहीं है और न ईसा 'बाइबिल में -ये सभी मानवके अपने चरित्रमें समाये हुए हैं और चरित्र नीतिमें तथा नीति सत्यमें समाहित है; और सत्य ही शिव है। आप चाहे जिस नामसे इसे पुकारें, यह वही है। और आरोग्यके इन प्रकरणोंमें इसी तत्त्वकी यत्र-तत्र झाँकी दीख पड़े, यही इस प्रयासका मूल हेतु है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-८-१९१३

११३. पत्र: मणिलाल गांधीको

फीनिक्स जाते हुए ट्रेनमें
[ अगस्त १६, १९१३के बाद ]

चि० मणिलाल,

आशा है, तुम 'इंडियन ओपिनियन'की फाइल साथ ले गये हो। आलस्यसे हमेशा डरते रहना।

सुबह, बलपूर्वक ही क्यों न हो, चारके पहले उठना। मैं आजकल अस्वस्थ हूँ, इसलिए इस विषयमें कमजोर साबित हो रहा हूँ। किन्तु इस कारण मेरी इस अनियमितताकी तुम नकल न करना।

१. पत्रमें उल्लिखित स्वास्थ्य सम्बन्धी लेखोंमें अन्तिम लेख इंडियन ओपिनियनके १६-८-१९१३ के अंकमें प्रकाशित हुआ था।