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११२. आरोग्यके सम्बन्धमे सामान्य ज्ञान [-३४]

पूर्णाहुति

स्वास्थ्य सम्बन्धी ये प्रकरण पिछले कई महीनोंसे क्रमशः प्रकाशित हो रहे थे। यह उनकी आखिरी किस्त है। यदि मुझे अवकाश मिल पाया तो कुछ-एक सादी वस्तुओंके गुण एवं उपयोगकी एक तालिका इसकी पूर्तिके रूपमें देनेका मेरा इरादा है। परन्तु जिन प्रकरणोंके लिखनेका मैने विचार किया था वे तो पिछले प्रकरणसे पूर्ण हो चुके है। अपने पाठकोंसे विदा लेनेके पूर्व इन प्रकरणोंके लिखनेके उद्देश्यकी छानबीन पुनः एकबार कर लेना उचित जान पड़ता है।

ये प्रकरण किसलिए लिखे गये? यह प्रश्न मैं अपने मनसे बार-बार करता रहा हूँ। मैं वैद्य या हकीम नहीं हूँ। इन विषयोंका मेरा ज्ञान साधारण है। कहीं मेरे ये सुझाव अधकचरे अवलोकन और चिन्तनका परिणाम तो नहीं हैं ! वास्तवमें है तो ऐसा ही; चिन्तन और अवलोकन दोनों ही अधूरे हैं। इनका अन्त ही नहीं है। प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ नया देखने में आता है और नया सोचने-समझनेको मिलता है। तो फिर यह प्रयास किसलिए? इस प्रकार मेरा मन ऊहापोहमें लगा रहा।

पर चिकित्सा-शास्त्र भी तो अपूर्ण प्रयोगोंपर ही आधारित है। इसमें बहुतेरी नीम-हकीमी है, यह कहा ही जा चुका है। अतः इतनी सारी नीम-हकीमीमें ये प्रकरण भी मान लिये जायें तो हर्ज नहीं होगा। ये लिखे निर्दोष हेतुसे गये हैं। रोग होनेपर औषधि बताना इनका हेतु नहीं है। रोगके प्रतिकारका मार्ग-निर्देशन ही मोटे तौरपर इनका उद्देश्य है। थोड़ा विचार करनेपर यह जाना जा सकता है कि रोगोंके प्रतिकारके उपाय बड़े सरल हैं। उनकी जानकारीके लिए किसी विशेष ज्ञानकी जरूरत नहीं है। पर उस मार्गपर चलना कठिन कार्य है। कुछ-एक रोगोंके बारेमें लिखना तो मैंने ठीक ही समझा-और वह यह बतलानेके लिए कि प्रायः सारे रोगोंका मूल एक ही है और इसलिए उनका इलाज भी एक-सा ही होना चाहिए। यह भी है कि बहुत सावधान रहने के बाद भी अनेक बार ऐसा होता है कि इन प्रकरणोंमें लिखी व्याधियाँ हो ही जाती हैं। इनके थोड़े-बहुत इलाज तो प्रायः सभी जानते-बताते हैं। मेरे अनुभव' भी इन्हींमें शामिल कर लिया जाये, तो हानिकी कोई सम्भावना नहीं होगी।

पर मुख्य बातपर चर्चा करना बाकी है। स्वास्थ्यकी आवश्यकता क्या है ? हमारी जीवनचर्या तो कुछ ऐसी ही जान पड़ती है, जैसे उसकी कोई जरूरत ही नहीं हो। इतना तो स्पष्ट है कि शरीरको हृष्टपुष्ट बनाकर उसे ऐश-आराममें लगा दिया जाय, अथवा पृथ्वीपर केवल वही परम प्राप्तव्य है, ऐसा मान लिया जाये और उसे शक्तिशाली देख-देखकर उसपर गुमान किया जाये. -यदि स्वास्थ्य प्राप्त करनेका इतना ही हेतु हो तो इससे तो ऐसे स्वास्थ्यकी अपेक्षा शरीर कुष्ठसे आक्रान्त हो जाये यही अधिक समुचित होगा।