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१११. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-३३]

१३. दुर्घटनाएँ : बिच्छू आदिके डंक

मुहावरा है, “जैसे बिच्छूने डंक मार दिया हो।" बिच्छूके डंककी वेदना कुछ ऐसी ही तीव्र होती है। सर्पदंशसे बिच्छूका डंक मनुष्यको अधिक कष्ट देता है, पर तो भी साँपसे हम अधिक भय खाते हैं, क्योंकि साँपके दंशमें मृत्युका भय होता है। बिच्छूके डंकसे मृत्यु कदाचित् ही होती है। डॉ० मूर लिखते हैं कि जिस मनुष्यका खून शुद्ध है उसे बिच्छूके डंकसे बहुत वेदना नहीं होती।

बिच्छूके और इस प्रकारके अन्य जहरी जीवोंके डंकोंके उपाय सरल हैं। जहाँ डंक लगा हो उस स्थानको नोकदार तेज चाकूसे अथवा सर्पदंशके लिए एक खास शस्त्र मिलता है उससे कुरेदकर रक्त बहने दिया जाये और फिर उस स्थानको चूसकर थूक दिया जाये। वेदना आगे न फैले, इसके लिए डंकसे थोड़ी दूरपर पट्टी बाँधी जाये और मिट्टीकी मोटी पट्टी भी बाँध दी जाये। मिट्टीकी पट्टीसे, सम्भव है, ज्यादातर वेदना एकदम कम हो जाये।

कई पुस्तकोंमें लिखा है कि डंकके स्थानपर समभाग पानी और सिरकेमें कपड़ा भिगोकर उसकी पट्टी रखी जाये। या नमकके पानीसे डंकवाला भाग लगातार धोया जाये। यदि वह अंग पानीमें डुबाया जा सके तो उसे डुबोकर रखा जाये। पर इन सारे उपचारोंमें मिट्टीकी पट्टी ज्यादा परिणामकारक उपाय है । दुर्भाग्यसे जिसे बिच्छूका डंक लगेगा, वह इस बातको अनुभव कर सकेगा। याद रखना चाहिए, मिट्टीका लेप जहाँतक बन सके, मोटा होना चाहिए। इसके लिए दो सेर मिट्टी भी अधिक न मानी जाये। मान लें कि अंगुलीमें बिच्छूने डंक मारा है तो कोहनी तक मिट्टीकी पट्टी दी जाये । यह अधिक नहीं है। एक लम्बे बर्तन में मिट्टीको घोलकर उसमें हाथ डुबाकर रखा जाये तो वेदना हलकी पड़ जायेगी। कनखजूरा, बर्र आदिके लिए भी यही इलाज ठीक माना जाये।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-८-१९१३