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१०९. नये कानूनका एक असर

हमें मालूम हुआ है कि पुरुषोत्तम मावजी नामके एक ब्रिटिश भारतीयको, जो (ट्रान्सवालके) १९०८ के कानून ३६की शोंके अनुसार बाकायदा पंजीकृत हैं, पंजीयन-प्रमाणपत्रसे वंचित कर दिया गया है। जब वह भारत जा रहे थे तो एक अधिकारीने उनसे प्रमाणपत्र ले लिया और कहा कि यदि ट्रान्सवालसे रवाना होनेके एक सालके अन्दर ही वे वापस आ जायेंगे तो प्रमाणपत्र उन्हें लौटा दिया जायेगा। हम आशा तो यही करते है कि हमारी यह सूचना सही नहीं है, किन्तु यदि सही है, तो जान पड़ता है कि किसी जरूरतसे ज्यादा उत्साही अधिकारीने यह गलती कर डाली है। किन्तु यदि सरकार कानूनकी ऐसी ही व्याख्या करती हो जिससे ट्रान्सवालके पंजीयन कानूनके अन्तर्गत प्राप्त अधिकारोंपर आँच आये तो यह सरकारके खिलाफ एक और शिकायतकी बात होगी तथा फिरसे संघर्ष आरम्भ करनेका एक और उचित कारण होगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-८-१९१३

११०. स्वर्गीय सर आदमजी पीरभाई

हमें रायटरके तारोंसे यह जानकर अत्यन्त शोक हुआ है कि बम्बईके एक बहुत बड़े दानी सज्जन, सर आदमजी पीरभाई, अब नहीं रहे। वे एक धनी व्यापारी थे; और अपने धनका उपयोग करना जानते थे। वे बम्बईके एक विख्यात आरोग्य-भवन (सैनिटोरियम) के स्वामी भी थे। पर उनकी दानशीलता किसी विशेष संस्था या व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं थी। उनकी दान-भावना बहुत उदार थी। पाठकोंको याद होगा कि सर आदमजीके पुत्र श्री करीमभाईने कुछ साल पहले नेटालकी यात्रा की थी। तबसे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयों तथा स्वर्गीय सर आदमजीके बीच एक सम्बन्ध स्थापित हो गया था और दक्षिण आफ्रिकाके जो भारतीय उनसे मिलने जाते थे वे उनके मामलोंमें स्नेहपूर्ण दिलचस्पी लेते थे। हम मतात्माके परिवारकी इस भारी क्षतिमें उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-८-१९१३