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भारोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-३२]


बाँधनेका हेतु यही है कि जहर नसोंसे होकर आगे न बढ़ने पाये। इसके बाद एक पैनी नोकवाले चाकूसे दंशके स्थानपर लगभग आधा इंचका घाव करके खून निकाल दिया जाये। इसके बाद पोटाशियम परमैंगनेट नामक क्षारके बैंगनी चूर्णको उस स्थानपर मला जाये। यह चूर्ण बहुत बड़ा अचूक इलाज माना जाता है। एक ओर जिसमें चूर्ण रखा जा सके और जिसके दूसरी ओर नोकदार छोटा चाकू रहता है, ऐसी डेढ़-एक इंच लम्बी लकड़ीकी नली भी एक शिलिंगमें मिलती है। यदि इलाजके ये साधन पासमें न हों तो घायलके घावको उसके पास मौजूद दूसरा व्यक्ति या स्वयं रोगी ही चूसने लगे और चूसा हुआ थूकता जाये। जिसके मुंहमें छाले वगैरा हों उसे चूसनेका यह काम नहीं करना चाहिए। क्योंकि चूसनेमें जहर आता है। [मुंह कटा-फटा हो तो जहर उसकी नसोंमें चला जाएगा।] यह उपचार सर्पदंशके पाँच-सात मिनटके अन्दर ही हो सके तभी कारगर हो सकेगा। जहरके एक बार खूनमें दौड़ जानेके बाद उसका. उतरना बहुत कठिन हो जाता है। मिट्टीके प्रयोग करनेवाले जुस्ट लिखते हैं कि उन्होंने सर्पदंशसे लगभग-मृत मनुष्यको मिट्टीके प्रयोगसे ठीक किया है। मिट्टीका एक गड्ढा करके घायलको उसमें सुलाया और उसे गर्मी प्रदान की और जहर चूस लिया; घायल उठ खड़ा हुआ। जुस्ट ऐसे दूसरे उदाहरण भी देते हैं। सर्पदंशका मुझे व्यक्तिगत अनुभव नहीं है, पर मिट्टीके अन्य अनेक प्रयोग करनेके कारण मिट्टीपर मेरी अटल श्रद्धा हो गई है। जिस स्थानपर दंश हो उस स्थानपर घाव करके पोटाशियम परमैंगनेट भर देनेके बाद अथवा चूस लेनेके बाद बीमारको तत्काल आधा इंच मोटी और काफी लम्बी-चौड़ी मिट्टीकी पट्टी बाँध दी जाये। जैसे कि हाथमें दंश हो तो सारे हाथपर ही मिट्टी चढ़ा देना ठीक होगा। हरएक मनुष्यको चाहिए कि वह एक पीपेमें मिट्टी भरकर अपने घरमें सदा तैयार रखे। मिट्टी महीन और छानी हुई हो तो अधिक ठीक। इसे घरके बाहर, धूपमें एक ऊँचे स्थानपर, जहाँ पानी न भरे, पीपेमें रखना अधिक अच्छा होता है। फटे हुए वस्त्रोंकी पट्टियाँ भी तैयार कर रखनी चाहिए । यह तैयारी सिर्फ सर्पदंशके ही लिए नहीं है बल्कि अनेक दुर्घटनाओं, चोटों और जख्मोंके काम पड़ती है।

बीमार यदि बेहोश होने लगे या उसका श्वासोच्छ्वास बन्द हो तो डूबे हुए व्यक्तिके लिए कृत्रिम श्वासोच्छ्वासके जो उपचार बतलाये गये हैं उनकी योजना करनी चाहिए। बेहोशी आने लगे तो उसे गर्म पानी या लौंग और दालचीनीका काढ़ा दिया जाये। बीमारको खुली हवामें रखा जाये, पर उसे जाग्रत रखा जाये। यदि उसका शरीर ठंडा होता जान पड़े तो उसके शरीरके आसपास गर्म पानीकी बोतलें रखी जायें अथवा गर्म पानीमें भिगोकर निचोई हुई फलालेनकी तहदार पट्टियाँ रखकर गर्मी पहुंचाई जाये।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-८-१९१३