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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


शरीरमें साँपके जहरका प्रसार एकदम हो जाता है और उसकी मृत्यु चटपट हो जाती है। यह सब वैद्यों एवं वैज्ञानिकोंने प्रयोगों द्वारा सिद्ध कर दिखाया है। एक लेखकने तो यहाँतक कह दिया है कि जो मनुष्य नमक आदिका सेवन छोड़ देता है और केवल फलादिपर निर्वाह करता है उसका खून इतना शुद्ध हो जाता है कि वह किसी भी प्रकारके जहरका सामना कर सकता है। यह अन्तिम बात किस हदतक सत्य है, यह अनुभवपूर्वक नहीं कहा जा सकता। और जिस व्यक्तिने एक-दो वर्षके लिए नमकका त्याग किया हो, उसका यह मान लेना उचित न होगा कि जो रक्त अनेक वर्षोंके दुरुपयोगसे दूषित हो चुका है वह एक-दो वर्षोंके सदाचरणसे एकाएक सशक्त हो गया है।

ऐसे प्रयोग भी करके दिखाये जा चुके हैं कि जो व्यक्ति भयभीत है और जो क्रोधसे आगबबूला हो रहा है, उसे यदि जहर चढ़े तो उसका असर तत्काल और बहुत शीघ्र होता है। गुस्से या भयके समय मनुष्यकी नाड़ीकी गति अत्यन्त तेज होती है और हृदयका स्पंदन भी अधिक होता है। इसका अनुभव' प्रत्येक मनुष्य स्वयं कर सकता है। जब-जब रक्ताभिसरण बड़ी तेज गतिसे होता है तब-तब वह अधिक गर्म हो जाता है और क्रोधादिकी गतिसे झूठी गर्मी उत्पन्न होती है और इसलिए वह हानिकारक होती है। क्रोध भी एक प्रकारका बुखार ही है, इसमें शंकाकी गुंजाइश नहीं है। अतः हम इतना तो देख ही सकते हैं कि सादिके जहरका सरलसे-सरल बचाव तो यह होगा कि हम सात्विक, अर्थात् प्रकृतिने जो खुराक हमें दी है उसे आवश्यक मात्रामें लें, क्रोध न करें, भयभीत न हों, साँप भी डस जाये तो "हाय मरे" कहकर यथोचित उपचार करनेसे पूर्व ही न मर जायें। हमें अपने स्वच्छ जीवनकी अमोघ शक्तिपर विश्वास रखना चाहिए और अन्ततोगत्वा इस विवेकके साथ धीरज रखना चाहिए कि भगवानने जितने दिनतक के लिए जीवन दिया है उतने दिन तक ही उसका निर्वाह होगा।

सर्पदंशसे होनेवाली बहुत-सी मौतें केवल भयसे या गलत उपचारके कारण होती है। यह कथन पोर्ट एलिजाबेथ म्यूजियमके प्रधान अधिकारी श्री फिज़ साइमनका है। उन्होंने साँपोंके सम्बन्धमें अनेक वर्षांतक अध्ययन किया है। साँपोंके जहरके उन्होंने अनेक प्रयोग भी किये हैं; भिन्न-भिन्न जातिके सांपोंकी जानकारी भी दी है; और उनके उपचार भी बतलाये हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने केवल दहशत खा जानेसे लोगोंको संकटमें पड़ते देखा है और कई केवल खतरनाक इलाजोंके कारण मृत्युको प्राप्त हुए हैं।

सर्पमात्र जहरीले नहीं होते। और जहरीले सर्पोमें भी सभीके जहरसे तत्काल मृत्यु नहीं होती। बड़े जहरी सर्पको भी अपने जहरकी पूरी थैली हमारे खूनमें खाली करनेका अवसर नहीं मिल पाता। इसलिए साँपके डसते ही मनुष्यको एकदम भयभीत हो जानेकी आवश्यकता नहीं है। आजकल तो इसका इतना सहज इलाज प्रचलित है कि उसे साँप-काटा व्यक्ति स्वयं ही तुरन्त कर सकता है। इलाज इस प्रकार है:-

साँप जिस स्थानपर काटे पहले उससे जरा ऊपर कसकर रूमाल बाँध दिया जाये। मजबूत पेंसिल या लकड़ीके टुकड़ेसे बल देकर उसे सरलतासे बाँधा जा सकता है।