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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य शान [-३२]


भेड़ियों आदि के बीच निर्भयतापूर्वक घूमते-फिरते हैं, फिर भी उन्हें किसी प्रकारकी हानि होती हो, सो नजर नहीं आता। यह कहा जा सकता है कि उनमें भी कुछ की सों और हिंसक जानवरोंसे मौत तो होती ही होगी; यह सम्भव है। पर इतना तो हम जानते ही है कि सर्पादि जन्तु इतने अधिक है और उनकी तुलनामें जोगी-फकीर इतने कम है कि यदि ये प्राणघाती इनके पीछे ही पड़ जायें तो उनमें से एक भी जिन्दा न बचे। इन जोगी-फकीरोंके पास इन जन्तुओंका मुकाबला करनेके साधन भी नहीं रहते, इतना तो हम मानते हैं और जानते भी हैं। अतः यह साबित होता है कि कितने ही भयंकर माने जानेवाले प्राणी अनेक योगियों और फकीरोंके साथ मैत्री रखते है अथवा उन्हें भयमुक्त रखते हैं। मेरी तो यह भी मान्यता है कि यदि हम प्रत्येक प्राणीके प्रति अपनी वैर-भावनाको त्याग दें तो वे जीव भी हमारे प्रति वैर-भाव रखें। दया या प्रेम मानवका महान् गुण है। इनके बिना वह ईश्वरका भजन ही नहीं कर सकता। दया तो धर्मका मूल ही है, इसका दर्शन हमें सारे धर्मोंमें थोड़ा-बहुत होता रहता है।

हो सकता है, साँपोंकी उत्पत्ति या उनके स्वभावकी क्रूरता हमारे ही स्वभावकी प्रतिच्छाया हो। मनुष्योंमें क्या हिंसक वृत्ति कम है ? हमारी जीभमें तो सर्पदंश भरा ही रहता है। हिंसक जानवर शेर, भेड़ियों ही की तरह हम अपने भाई-बन्धुओंको मार डालते हैं। धर्म-ग्रंथोंमें कहा गया है कि जब मनुष्य निर्दोष बन जायेगा तब बाघ और बकरी भी आपसमें मित्रतासे रहेंगे। जबतक हमारे भीतर ही शेर-बकरीका युद्ध चल रहा है तबतक इस विश्व-देहमें भी वह विग्रह चलता रहे, इसमें आश्चर्यकी क्या बात है ? हम तो विश्वके दर्पण है। हमारे शरीर-जगतमें विश्वके समस्त भाव समाये हुए हैं। यदि उन्हें बदल दिया जाये तो संसारकी भावनामें भी परिवर्तन हो जायेगा यह स्पष्ट है। जो-जो व्यक्ति अपने मनोभाव बदलते जाते है उनके लिए संसार भी परिवर्तित होता जाता है। यही ईश्वरकी महान् माया है। यह एक विचित्रता है और इसीमें हमारे सुखका मूल स्रोत है। अतः दूसरे क्या करते हैं, इसकी राह देखनेकी हमें आवश्यकता नहीं रह जाती।

सर्पदंशपर इस प्रकार विस्तारसे लिखनेका हेतु यह है कि सर्पदंशके भौतिक उपाय-भर बतलाने के बजाय उसमें जरा गहरा उतरा जाये तो इस प्रकारके समग्रखतरोंसे बचनेका विशेष चमत्कारी उपाय हमारे हाथ लगता है। और उस उपायको यदि एक पाठक भी ग्रहण करनेका प्रयत्न करें तो हम अपना प्रयास सफल मानेंगे। हम आगे ही कह आये हैं कि आरोग्यके इन प्रकरणोंको लिखनेका हेतु केवल शरीर-आरोग्यकी हिफाजत रखना ही नहीं, बल्कि सब प्रकारके स्वास्थ्य-सम्पादनके साधनोंका विचार करना है।

आजके शोधकर्ता भी इतना कहने लगे हैं कि जिस मनुष्यका शरीर स्वस्थ है, जिसका रक्त परितप्त नहीं है और जिसका आहार सात्विक है, ऐसे मनुष्यको एकाएक साँपका जहर नहीं चढ़ पाता। ठीक इसके विरुद्ध जिस व्यक्तिका खून शराब आदिके पीनेसे अथवा खूब मसालेदार या गर्म तासीरवाला भोजन करनेसे संतप्त हो, ऐसे व्यक्तिके