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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य शान [-३२]


याद रखना चाहिए कि कृष्णके विषय में भागवत्कारने अपने ज्ञानकी सीमाके अनुसार ही तो लिखा है। कृष्णके वास्तविक स्वरूपको कोई नहीं जानता।

फिलहाल तुम्हें अपने जीवनका उपयोग माता-पिताकी सेवा, शारीरिक श्रम और अध्ययनमें करना चाहिए।

मैं स्थायी रूपसे कहाँ रहूँगा, सो कहा नहीं जा सकता। मैं नहीं जानता, वहाँ मेरी तसवीर मिलेगी। उसका आग्रह करनेकी जरूरत नहीं है। श्री कैलेनबैककी मिल सकती है।

मैने मोक्ष-प्राप्तिकी परीक्षा अभी पार नहीं की। अपने सभी मनोविकार मैंने अभी नहीं जीते। अभी स्वादेन्द्रियको भी जीत लिया है, ऐसा नहीं माना जा सकता। मेरी यह कहनेकी शक्ति भी नहीं है कि किसी भी हालतमें विषयेन्द्रिय मेरे वशमें ही रहेगी। स्त्री-पुत्रादि और कुटुम्बके प्रति मेरी आसक्ति अभी बिलकुल क्षीण नहीं हुई है। मेरे विषयमें इतना ही कहा जा सकता है कि मैं मोक्षकी प्राप्तिके लिए दृढ़ प्रयत्न कर रहा हूँ।

तुम्हारे उन सब पत्रोंका जवाब, जिन्हें मैं कई दिनसे अपने साथ लिए घूम रहा था, आज पूरा हो गया। अभी भी जो योग्य मालूम हो, सो पूछना।

मैं पिछले दस दिनसे जोहानिसबर्गमें हूँ। समझौता न हो तो संघर्ष पुनः आरम्भ करनेके लिए आया हूँ। क्या होगा, कहा नहीं जा सकता। प्रिटोरियासे जवाबकी राह देख रहा हूँ। श्री गोखलेकी इच्छाके अनुसार श्री पोलक विलायत गये हैं।

अपना दैनिक कार्यक्रम सूचित करना। भाई कोटवालको पत्र लिखना। उनका पता है कोटवाल घर, थाणा।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू. ५६४८) की फोटो-नकलसे। सौजन्य : नारणदास गांधी

१०६. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-३२]

१२. दुर्घटनाएँ : सर्प-दंश

साँपसे मनुष्य सदा ही भय खाता आया है। साँपके सम्बन्धमें भ्रान्तियोंका भी पार नहीं है। साँपका नाम आते ही हम भयभीत हो उठते हैं। रातके समय उसका नाम लेना हो तो उसे [गुजरातमें] "मोटा जीव" कहते हैं। हिन्दुओंमें तो उसकी पूजा होती है। नागपंचमीका दिन सर्प-पूजनका ही दिन माना जाता है। सर्वसामान्य यह मान्यता है कि शेषनागके फनपर पृथ्वीका भार है। भगवान भी शेषशायी अर्थात्शे षनागपर शयन करनेवाले माने जाते है। शिव तो सर्पकी माला ही पहनते हैं। "सहस्रमुखी शेषनाग भी वर्णन नहीं कर सकता" -यह कहा जाता है। इससे प्रतीत होता है कि साँपमें बुद्धि और ज्ञान भी है। कुछ ऐसी ही मान्यता ईसाई धर्ममें