जिन्हें ये उपाय ठीक न जान पड़ें उनके लिए नीचे लिखे उपचार भी है। इन्हें जान लेना चाहिए। ये उपचार एक अंग्रेजी लेखककी पुस्तकसे लिये गये हैं। केलेका पत्ता लेकर उसपर जैतूनका तेल या मीठा तेल चुपड़ दिया जाये और इसे जले अंग- पर बाँध दिया जाये। पत्तेके स्थानपर तेल में डुबोकर मुलायम पतला कपड़ा बांधा जाये तो भी काम देगा। अलसीका तेल और चुनेका पानी बराबर मात्रामें अच्छी तरह मिलाकर उपयोगमें लाया जाये। यह भी लाभदायक है। यदि चिपका हुआ कपड़ा न निकले तो कुनकुने दूध और पानीसे उसे तर किया जाये। खूब तर हो जानेपर वह छूट जायेगा। यदि तेलकी पट्टी बाँधी गई हो तो प्रथम बार उसे दो दिनके बाद खोला जाये और फिर उसे प्रतिदिन खोला और बाँधा जाये। यदि छाले आ गये हों तो उन्हें फोड़ देना चाहिए, पर उनके ऊपरकी त्वचाको न खींचें।
जलने पर यदि त्वचा लाल-भर हुई हो तो मिट्टीकी पट्टीसे बढ़कर कोई इलाज नहीं है। जलन तो इससे एकदम शान्त हो जायेगी।
अँगुलियोंके बीच में जला हो तो ध्यानपूर्वक साफ पट्टी इस प्रकार बाँधी जाये कि अंगुलियां एक-दूसरेसे मिलने न पायें। अनेक बार दाहक तेजाब आदिके पड़ जानेसे भी आदमी जल जाता है। ऐसे प्रसंगोंपर ऊपर सुझाये उपचार उपयोगी होंगे।
इंडियन ओपिनियन, २-८-१९१३
१०५. पत्र: जमनादास गांधीको ।
[जोहानिसबर्ग]
श्रावण सुदी ६, [अगस्त ७, १९१३]'
तुम लिखते हो कि बाथ [कूने द्वारा प्रचारित कटि-स्नान आदि] के विषय में हरिलालने तुमसे जो-कुछ कहा है उससे तुम भड़क गये हो। भड़कनेका कोई कारण नहीं है। हरिलालने जो-कुछ कहा, बिना जाने कहा है। इतनी ज्यादा सावधानी रखनेकी बिलकुल जरूरत नहीं है। तापक्रम आदि नापनेकी झंझटमें मैं पड़ता ही नहीं। शरीरकी गर्मीसे पानीकी गर्मी कम होनी चाहिए। बाकी जानकारी अनुभवसे मिलती रहती है। जहाँ-जहाँ कूनका बाथ लागू पड़ता मालूम हो वहाँ-वहाँ उसका प्रयोग निःसंकोच करना चाहिए।
टमाटर, नीबू आदि बुखारका घर माने जाते हैं। उसका कारण यह है कि डटकर भोजन करने के साथ-साथ ये वस्तुएँ ली जाती हैं और बीमारी आ जानेपर दोष इन वस्तुओंको दिया जाता है। दूसरे, जिस मनुष्यका रक्त मिर्च, काली मिर्च, मसाला,
१. मालूम पड़ता है, यह पत्र दक्षिण आफ्रिकासे जमनादास गांधीके दिसम्बर १९१२ में भारत चले जानेके बाद लिखा गया होगा।