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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आदिके बिना जीभ पकड़कर नहीं रखी जा सकती। जीभको बाहर निकाल कर जबतक मरीजमे चेतनाका संचार हो तबतक उसे बाहर ही पकड़े रखना चाहिए। अब मरीजको सीधा लिटा दिया जाये, परन्तु सिर और धड़का ऊपरी भाग पैरोंकी अपेक्षा कुछ ऊँचा रखा जाये। अब मरीजके सिरके पास किसीको घुटनोंके बल बैठना चाहिए, और मरीजके दोनों हाथोंको धीरेसे उठाकर अपनी ओर सीधा और लम्बा करना चाहिए। ऐसा करनेसे उसकी पसलियां कुछ ऊँची उठेगी और बाहरकी वायु मरीजके शरीरमें प्रवेश कर सकेगी। फिर तुरन्त मोड़कर मरीजके हाथ सीनेपर दबाये जायें। ऐसा करने से पसलियां दबेंगी और मरीजके शरीरसे श्वास बाहर निकलेगा। चुल्लूसे छातीपर गर्म और ठंडे पानी भी मारते रहना चाहिए। आसपास साधन हों और यदि आँच जलाई जा सके या कहींसे लाई जाये तो मरीजको सेक करके उसे गर्मी पहुँचाई जाये। अपने पासके वस्त्र मरीजको ओढ़ा दिये जायें। मरीजके शरीरको मालिश जारी रखी जाये, जिससे उसके शरीरमें गर्मी पैदा हो सके। ये सारे ही उपाय बहुत देर तक करते रहना पड़ता है। एकदम आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए। डॉक्टर वेडिंग कहते हैं कि इस प्रकार करते रहनेपर मरीजको ५ घंटोंके बाद भी श्वास जारी हुआ है। अत: तत्परता और शीघ्रतापूर्वक यह क्रिया जारी रखी जाये। मरीजमें चेतना व्याप्त हुई जान पड़े तो झट ही उसे कोई गर्म पेय दिया जाये । नारंगीका रस गर्म पानी में मिलाकर या दालचीनी, लौंग और मिर्चका काढ़ा देनेसे मरीज चेतन होगा। मरीजकी नाकमें तम्बाकू सुंघानेपर भी कभी-कभी लाभ होनेकी सम्भावना है। मरीजके चारों ओर भीड़ करके किसीको खड़ा नहीं रहना चाहिए, क्योंकि सर्वाधिक आवश्यक बात यह है कि मरीजको अधिकसे-अधिक हवा मिल सके।

मरीज अब जीवित नहीं रहा-- साधारण रूपसे इसकी पहिचान इस प्रकार है : उसका श्वासोच्छ्वास बन्द हो जायेगा और छातीपर हाथ या नली रखनेपर धड़कन प्रतीत नहीं होगी। नाड़ी बन्द हो जायेगी। आँखें अधखुली होंगी। पलकें फूली हुई होंगी। जबड़े भिचे होंगे। अँगुलियाँ टेढ़ी होंगी। जीभ दाँतोंके बीच होगी। मुंहसे झाग गिरने लगेगा। नाकसे पानी झरने लगेगा और सारा शरीर निस्तेज हो जायेगा। उस मुंहके पास पंख ले जानेपर उस [पंख में कोई कंपन नहीं होगा। शीशा रखनेपर उसपर उच्छ्वासका कोहरा नहीं जमेगा। यदि इनमें से बहुतेरे चिह्न एक साथ हों तो सम्भवत: प्राण जाता रहा है, यही मानना पड़ेगा। डॉक्टर मूर कहते हैं कि ये सारे चिह्न हों तो भी एकाध बार प्राण बचा रह जाता है। प्राण चले जानेकी ठीक निशानी यह होती है कि शरीरमें विकृति शुरू होने लग जाये। यह सब समझ लेनेपर हमें इतना तो जान ही लेना चाहिए कि मरीजकी हिफाजत बड़ी देर तक करनेके बाद ही आशा छोड़नी चाहिए।

[ गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-७-१९१३