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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रा० रा० सत्तादेवजी' मुसाफरीके लीये कोई वखत आने सकेगे।

मोहनदास गांधीका वंदेमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल प्रति (सी० डब्ल्यू० ५७३५) से।

सौजन्य : विष्णुदत्त दयाल

१००. पत्र: एशियाई-पंजीयकको

[फीनिक्स
जुलाई २३, १९१३के बाद]

एशियाई-पंजीयक

प्रिटोरिया

महोदय,

[विषयः] मुहम्मद ई० भायात : ४१/ई०/८५७

आपके गत २३ जुलाईके पत्रके सन्दर्भ में मैंने हाल ही में जोहानिसबर्गसे टेलीफोनपर आपसे जैसा कहा था उसके अनुसार मैंने श्री लेनके साथ हुआ अपना पत्र-व्यवहार देख लिया है। मैं आपका ध्यान उनको लिखे गये अपने ११ अप्रैल, १९१२के पत्र' और उसी वर्ष ८ मईको सरकारी तौरपर भेजे गये उनके उत्तरकी ओर दिलाना चाहता हूँ। मेरा निवेदन है कि दोनोंको एक साथ रखकर पढ़नेके बाद मेरी यह व्याख्या असंगत नहीं ठहरती कि अनुमतिपत्रोंको अनिश्चित काल तक (जाहिर है, मन्त्री जबतक चाहे तभीतक) बार-बार नया कराते रहना पड़ेगा। हमेशाकी तरह आज भी मेरा विचार स्थायी प्रमाणपत्रोंकी मांग करनेका है। परन्तु मैं नया कानून पास हो जानेकी राह देख रहा था। हालाँकि नया विधान अब पास हो चुका है, पर दुर्भाग्यवश अभीतक कुछ प्रमुख मसले तय होने बाकी हैं। उनका कोई सन्तोषप्रद हल निकल आनेपर में इस बालकके बारेमें समुचित निवेदन करूँगा। मेरा अनुरोध है कि इस बीच अनुमतिपत्रकी अवधि और बढ़ा दी जाये। मैने देखा है कि आपने पिछले महीनेकी २६ तारीखके अपने पत्रमें भायातको लिखा था कि बालकके अनुमतिपत्रकी अवधि बढ़वानेके लिए उनको १० पौंड जमा कर देने चाहिए। मेरा खयाल है कि १९०८ के अधिनियम ३६ के अन्तर्गत आपको जो सत्ता प्रदान की गई थी वह अब भी यथावत है। यदि आप मेरी व्याख्यासे सहमत हों, तो पैसा जमा कराना आवश्यक नहीं है। आशा है कि मेरे इस निवेदनको देखने के बाद आप अपने उस पत्रमें कही गई पैसा जमा करानेकी बातपर आग्रह नहीं करेंगे।

१. शायद “सत्तदेवजी" लिखना चाहते हों।

२. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ २५३-५४ ।