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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सको तो उनका प्रभाव पड़ेगा और बादमें यह सब जाहिर करने के बाद विवाह करनपर भी उस स्त्रीके साथ विषय-भोग करना तुम्हारे लिए मुश्किल हो जायेगा। तुमने प्रजा-पालन आदिको उपाधि-रूप माना है; तुम देखोगे कि ऐसा करने मे तुम इस दोषसे भी बच जाते हो।

अभी समझौता नहीं हुआ है। हो जायेगा, ऐसा मानता हूँ। वैसा हो गया तो भी अभी सितम्बरसे पहले यहाँसे निकलंना सम्भव नहीं होगा। रवाना होते समय मैं तुम्हें तार करूँगा।

हमारे-जैसे लोगोंपर अनुचित आहारका असर तुरन्त ही क्यों हो जाता है, इसका कारण तुमने ठीक-ठीक है समझाया बुद्धदेवने ज्यों ही भिक्षासे प्राप्त मांसका भक्षण किया, त्यों ही उनका शरीरपात हुआ। श्रीमती बेसेन्टके आहारमें कभी अनजाने अंडे आ जायें तो वे के कर डालती है।

वालजी फौजदारके लड़के के लिए नाकसे पानी लेने का प्रयोग अच्छा, बल्कि उत्तम, रहेगा। इसके सिवा उसे अपने आहारमें फेरफार करना चाहिए। उसे पहले एक या दो दिनका उपवास करना चाहिए। कुछ दिनतक केवल फलाहार करना चाहिए और वह भी दिनमें एक ही बार । कूनकी बताई हुई विधिसे [कटि-] स्नान करना चाहिए और रातका भोजन तो बिलकुल छोड़ देना चाहिए। घी पिघलाकर और उसमें कपूरका चूर्ण मिलाकर संघना चाहिए। रोज ऐसा तीन-चार बार किया जाये। तम्बाकू सूंघने में भी दोष नहीं है। उसका उपयोग औषधिके रूपमें और विचारपूर्वक किया जाये तो हर्ज नहीं।

सर आइज़क न्यूटनकी खोजके विषय में तुम्हारा कहना बिलकुल दुरुस्त है । अभी-अभी विख्यात विज्ञान-शास्त्री वैलेसने भी यही कहा है। वे कहते है कि इन सारी खोजोंसे लोगोंके नीति-बोधमें कोई सुधार नहीं हुआ है।

दूधके विषयमें किसीने कोई विचार न किया हो, ऐसा माननेका कारण नहीं है। मेरा तो खयाल है कि कई लोग दूधके बिना काम चला लेते होंगे। परन्तु जैसा मैंने लिखा था, किसी महापुरुषने भारतमें मांसके त्यागका जो परिवर्तन कराया वह इतना महत्वपूर्ण था कि दूधके विषय में विचार करने या लिखनेकी बात, मालूम होता है, किसीको सूझी ही नहीं। लेकिन हो सकता है कि यह हमारा अज्ञान हो। न तो हमने सब-कुछ पढ़ा है और न सब-कुछ देखा है। इसलिए इस विषय में यही दृष्टि उत्तम है -भूतकाल में विचार हुआ हो या न हुआ हो किन्तु यह बात हमारी बुद्धिको जंचती है या नहीं? इसके सिवा दूधके त्यागको किसीने न तो पाप बताया है, न कोई ऐसा मानता ही है। स्वामी रामतीर्थका शिक्षण कई जगह मुझे स्थूल प्रतीत हुआ है। कहीं-कहीं तो अनीतियुक्त भी मालूम हुआ है। यात्राके विषयमें उनके विचार बहुत सतही हैं। उनकी तुलनामें मलबारीने' कहीं ज्यादा अच्छे विचार प्रकट किये हैं।

१. देखिए खण्ड ११,“पत्र: जमनादास गांधीको", पृष्ठ ५०९ ।

२. (१८७३-१९०६); प्रसिद्ध दार्शनिक, कवि और संत ।

३. (१८५४-१९१२); बहरामजी मेरवानजी मलबारी; कवि, पत्रकार और समाज-सुधारक ।