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९८. पत्र: जमनादास गांधीको

[फीनिक्स]
आषाढ़ वदी १ [जुलाई १९, १९१३]

चि० जमनादास,

तुम्हारे दो पत्र एक-साथ मिले। मैं तो विवाह करनेकी सलाह देता हूँ। इसका कारण यह है कि मेरे लेखे तुममें तीव्र आत्मबल नहीं है। तुम हठपूर्वक विवाहसे इनकार करते रहो तो इससे तुम्हारे माता-पिताको अत्यन्त दुःख होगा और उससे भी ज्यादा दुःख तुम्हारे [भावी] ससुरको होगा। यह सब तुम कर सकते हो, किन्तु इसके लिए तुम्हें काफी ज्ञान प्राप्त हो जाना चाहिए। ज्ञान हो जायेगा तब तुम न तो मुझसे सवाल पूछोगे, और न तुम्हारे माता-पिता या अन्य कोई तुम्हारे शब्दोंका गलत अर्थ करेंगे। तुम दृढ़तापूर्वक यह नहीं कह सकते कि तुम्हारे जो विचार आज है वे ही सदा रहेंगे। बुद्धदेवको जिस दिन [केवल ] परोक्ष-ज्ञान हुआ उसी दिन वे अपनी स्त्रीको सोता हुआ और माता-पिताको रोता हुआ छोड़कर चले गये। फिर भी दुनियाने उनके कार्यकी सराहना की है। तुम्हारा विचार तो फिलहाल मेरे प्रति तुम्हारी श्रद्धा-पर आधारित है। इसलिए मैंने तुम्हारी स्थितिको ध्यानमें रखकर तुम्हें अभीष्ट सलाह दी है। किन्तु मेरी शर्त तुम याद रख सकते हो। मैंने तुमसे यह कहा है कि तुम्हें विवाह तो करना ही पड़ेगा; किन्तु यदि तुम उसके साथ विषय-भोग न करो तो तुम्हारा और उसका उद्धार हुए बिना न रहेगा। और यह उदाहरण दूसरोंके लिए भी उत्तम सिद्ध होगा। विवाह करके अपनी स्त्रीके विषय में भी अखण्ड ब्रह्मचर्यका पालन करना विवाह किये बिना उसका पालन करनेकी अपेक्षा ज्यादा कठिन है। तुम्हारे मनपर ब्रह्मचर्यकी महिमाकी छाप गहरी पड़ी होगी, तभी तुम इसका पालन कर सकोगे। और इसका सम्भव होना पिछले जन्मोंमें संचित महापुण्यके आधारपर ही होगा। ऐसी शक्ति तुममें हो तो तुम्हें यह करना चाहिए। अपने विचार तुम्हें विनयपूर्वक अपने माता-पिताको और उनके द्वारा ससुरको बताना चाहिए। तुम्हें उनसे कहना चाहिए-'मेरा विचार अखण्ड ब्रह्मचर्य पालन करनेका है। मुझे ऐसा लगता रहता है कि विवाह न करूं तो अच्छा। यदि आप मेरे विचार समझ सकते हैं तो मेरी मदद कीजिए। किन्तु यदि आपको यह सब बालिश बुद्धिका लक्षण मालूम होता हो तो मैं आपकी आज्ञा मानकर विवाह कर लूंगा। किन्तु मैं स्त्री-संग नहीं करूंगा। मैं उससे भी ब्रह्मचर्यका पालन कराने और अपने कार्यमें उसे सहचरी बनानेका प्रयत्न करूंगा। हम एक शय्यापर भी नहीं सोयेंगे। मुझे उसका जितना खयाल करना चाहिए मैं जरूर करूँगा और उसके प्रति स्वच्छ प्रीति रमूंगा।" ऐसे वचन तुम ज्ञानपूर्वक कह

१. यह पत्र जमनादास गांधीके दक्षिण आफ्रिकासे दिसम्बर, १९१२ में भारत चले जानेके बाद लिखा गया प्रतीत होता है ।