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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२९]


होगी। उसकी नालपर एक बड़ा कपड़ा लपेट कर उसपर पट्टी बाँध दी जाये। नालमें धागा बाँधकर उसे बच्चेके गले में डाल दिया जाता है। यह खराब रिवाज है। पट्टी सुबह-शाम खोली जानी चाहिए। नालके चारों ओर यदि कुछ गीला भाग नजर आये तो उसपर चावलका छना हुआ बारीक साफ आटा रुईके फाहेसे लगाना चाहिए जिससे गीलापन सूख जायेगा।

बच्चेको जबतक माताका दूध भरसक मिलता हो, उसे दूसरी कोई भी खुराक देनेकी आवश्यकता नहीं है। जब दूध कुछ कम उतरने लगे तब गेहूँ भून और पीसकर उसका आटा, गरम पानी में थोड़ा गुड़ मिलाकर, बच्चेको दें। यह दूध-जैसा ही गुण करेगा। इसके बदले आधा केला कुचलकर और उसमें आधा चम्मच जैतूनका तेल डालकर दोनोंको फेंटकर बच्चेको दिया जाये। यह भी बच्चेके लिए बड़ा फायदेमन्द होगा। यदि गायका दूध देना हो तो प्रारम्भमें तीन भाग जल और एक भाग दूध उबालकर दिया जाये। इसमें भी थोड़ा शुद्ध गुड़ डाला जाये। देखा गया है कि गुड़के स्थानपर चीनी मिलानेसे नुकसान होता है। बच्चेको धीरे-धीरे ताजा मेवा अधिकाधिक देनेकी व्यवस्था की जाये तो उसका रक्त जन्मसे ही शुद्ध होगा और बच्चा तेजस्वी तथा सशक्त बनेगा। दाँत आते ही अथवा उससे भी पहले अनेक माताएँ बच्चेको दाल, भात, सब्जी आदि देने लगती है, पर इसमें शंका नहीं कि यह बच्चेके लिए अत्यन्त हानिकर है। चाय-काफी तो बच्चोंको हरगिज न दी जाये।

बालक जब ठीक बड़ा हो जाये, यानी चलना सीख ले तब उसे वस्त्र आदि पहनाये जायें। जूतोंकी आवश्यकता नहीं। उसे काँटों आदिमें तो चलना नहीं पड़ता, अत: बिना जूतोंके रहनेसे उसके पैर मजबूत होंगे और जूतों में कसे रहनेके कारण रक्तसंचारमें होनेवाली रुकावट नहीं होगी। निरी शोभाके लिए बच्चेको रेशमी, ऊनी चुस्त पायजामा, सिरपर टोपी आदि पहना देना तो जंगली और हानिकारक रिवाज है। प्रकृतिने उसे जो शोभा दी है, हम उसमें वृद्धि करनेका प्रयत्न कर सकते हैं, यह मान लेना तो निरा अभिमान और अज्ञान है।

बच्चेकी शिक्षा उसके जन्मसे ही शुरू हो जाती है। और यही मानना चाहिए कि उसके खरे गुरु तो माता-पिता ही है। बच्चेको धमकाना, उसके शरीरको [ वस्त्रादिसे ] लाद देना, उसके पेटको ढूंस-ठूसकर भरना आदि भी शिक्षाके नियमोंका उल्लंघन ही है। चिड़चिड़े माता-पिताका बच्चा चिड़चिड़ा बनेगा, नाजुक माता-पिताका बालक नाजुक होगा। वह अलफाज भी माता-पिताके ही सीखेगा। माता-पिताके मुंहसे शुद्ध शब्द निकलेंगे तो वह भी शुद्ध बोलेगा। माता-पिता अशुद्ध उच्चारण करेंगे तो बच्चा भी। माता-पिताके मुंहसे यदि अपशब्द निकलेंगे तो बच्चा भी उन्हें सीख जायेगा। माता-पिता अनीतिका आचरण करेंगे तो बालक भी अवश्य ही अनीति ही ग्रहण करेगा। जैसा बाप वैसा बेटा और जैसा वृक्ष वैसा फल यह कहावत ठीक ही है। बापसे मतलब यहाँ माता-पिता दोनोंसे है। बालक खान-पान भी उन्हींसे सीखेगा। जो सीख बच्चा घरमें हासिल करेगा, भविष्यमें उसे फिर वह नसीब न होगी।

यह सारा विचार करते हुए इसका अन्दाज किया जा सकता है कि माता-पिताका फर्ज कितना नाजुक है। मनुष्य-मात्रका सर्वप्रथम कर्त्तव्य यह है कि वह अपनी