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९७. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२९]

९. बच्चोंकी सार-सम्हाल

यह लेख दाईसे सम्बन्धित कार्योंकी तफसील देने के विचारसे नहीं लिखा जा रहा है। यहाँ हम बच्चेका जन्म हो जानेके बादके समयका विचार करेंगे। जो पिछले। प्रकरणोंको समझ चुके हैं वे जान सकेंगे कि प्रसूति-कालम भी जच्चा और बच्चा दोनोंका दम अँधेरी कोठरीमें, मैली-कुचैली गुदड़ीमें और जहाँ हवा न आती हो तथा नीचे अंगीठी आदि रखकर नहीं घोंटा जाना चाहिए। प्रसूताको अँधेरे में रखनेका रिवाज चाहे जितना पुराना क्यों न हो--हानिकारक ही है। बिछौने के नीचे आग रखनेका रिवाज भी अनावश्यक और जोखिमसे भरा है। सर्दीके मौसम में प्रसूताको अवश्य ही अधिक गर्मीकी जरूरत है और उसके लिए उसे ओढ़ना अधिक चाहिए। कमरेमें यदि सर्दी अधिक हो तो अँगीठी, बाहर निधूम करके कमरे में ले जाई जाये और इस प्रकार हवा गर्म रखी जाये। परन्तु टियाके नीचे अंगीठी रखनेकी तो कतई जरूरत नहीं है। प्रसूताके बिछौने में गर्म जलकी बोतल रखनेसे भी उसे गर्मी मिलेगी। जच्चाको गन्दे और मैले कपड़ों में सुलाना भी निरा भ्रम है और उसमें खतरा है। प्रसूतिसे उठनेपर सारे वस्त्रोंको अच्छी तरहसे धोकर काममें लाया जा सकता है।

बच्चेकी तन्दुरुस्ती माताके स्वास्थ्यपर निर्भर है। अतः ऊपर बताई गई सावधानी रखने के बाद माताको जैसी अनुकूल पड़े वैसी खुराक देनी चाहिए । गोंद आदिके सेवनसे कोई लाभ होता है, ऐसा नहीं जान पड़ता। प्रसूता यदि गहूँकी चीजें, और केला आदि फलोंके साथ जैतूनके तेलका सेवन करे तो उसके शरीरमें गर्मी रहेगी और दूध बढ़ेगा। जैतूनके तेलसे उसके दूधमें रेचक गुण होगा और बच्चेका पेट साफ रहेगा। शिशुको कोई भी तकलीफ जान पड़े तो माताके स्वास्थ्यकी जाँच की जानी चाहिए। बच्चेको दवा देना तो उसे हाथसे खो देनेके समान है। बच्चेका पेट अत्यन्त नाजुक होता है। और दवाका जहर उसे झट लग सकता है। ऐसेमें माताको ही दवा लेनी चाहिए; इससे औषधिके गुण सूक्ष्म रूपसे माँके दूध में उतर आयेंगे। अनेक बार बच्चेको खाँसी और बुखार हो जाता है। ऐसी अवस्थामें घबराना नहीं चाहिए बल्कि एक-दो दिन राह देखकर कोई विशेष कारण हो तो उसे दूर करना चाहिए ताकि रोग दूर हो जाये। भाग-दौड़ करने और दवा-दारू करनेसे बच्चेकी तबीयत खराब ही होगी।

बच्चेको सदा कुनकुने पानीसे नहलाना जरूरी है। कपड़े तो उसे भरसक कम ही पहनाने चाहिए। कुछ महीनों तक तो कोई कपड़ा न हो तो विशेष अच्छा। उत्तम तो यह होगा कि एक छोटी-सी नरम चादरमें उसे लपेट रखा जाये और उसपर गरम वस्त्र ओढा दिया जाये। इससे बच्चेको वस्त्र आदि पहनानेकी असुविधा बचेगी और वस्त्र भी कम खराब होंगे। इससे उसकी काठी भी नाजुक होनेके बजाय मजबूत