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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय


बादमें प्रकाशित किये जायें। इस सम्बन्धमें कुछ सज्जनोंने हमारा ध्यान कानूनके १९ वें खण्डकी ओर खींचा है और कहा है कि या तो हमने इस खण्डके प्रभावको नजरअन्दाज कर दिया है अथवा हम उसे समझ ही नहीं सके हैं। यह खण्ड हमारे ध्यानमें है। हम एक बार फिर इस खण्डका अक्षर-अक्षर पढ़ गये हैं। उसमें कुछ भी खतरनाक चीज हमारे देखने में नहीं आई। उस खण्डका भावार्थ नीचे लिखे अनुसार है :

प्रत्येक व्यक्ति जो संघमें प्रविष्ट हो अथवा उसकी सीमामें पाया जाये, अगर [प्रवासी] अधिकारी चाहे तो उसे उसके सम्मुख उपस्थित होना पड़ेगा और बताना होगा कि वह संघ अथवा अमुक प्रान्तके लिए निषिद्ध प्रवासी नहीं है। [प्रवासी] अधिकारी विनियमोंके अनुसार उस व्यक्तिसे हलफ लेनेको कह सकता है। संघमें दाखिल होने अथवा रहनके हकको साबित करने के लिए दस्तावेज अथवा अन्य प्रमाण माँग सकता है और [ इस सम्बन्धमें] अगर प्रवासी अधिकारी कोई परीक्षा लेना चाहे अथवा अन्यथा जाँच करना चाहे तो ऐसा करनेके लिए वह [व्यक्ति ] बँधा हुआ है। [प्रवासी] अधिकारीको, अगर उस व्यक्तिके किसी रोगसे ग्रस्त होनेका सन्देह हो तो, डॉक्टरी मुआयना करानेका भी अधिकार है। इस प्रकार लिये गये हलफनामेके ऊपर कोई टिकट लगानेकी जरूरत नहीं है। यदि इस तरह परीक्षा लेनेके बाद प्रवासी अधिकारीको लगे कि वह व्यक्ति निषिद्ध प्रवासी नहीं है तो वह उसे छोड़ देगा; लेकिन जो व्यक्ति ऊपर लिखे अनुसार परीक्षा न दे, अथवा परीक्षा देने के बाद भी अधिकारीके विचारानुसार बाधित पुरुष जान पड़े, उस व्यक्तिको प्रवासी अधिकारी उतरने नहीं देगा, और उसको लिखित सूचना देगा कि यदि उसे प्रवास निकाय (इमिग्रेशन बोर्ड) में अपील करनी हो तो करे। यदि वह व्यक्ति स्टीमरपर है, तो उसे अपीलका नोटिस तत्काल ही देना पड़ेगा; अन्यथा प्रवासी अधिकारीका लिखित उत्तर प्राप्त करनेके तीन दिनके अन्दर अपीलका नोटिस देना होगा।

हमारी समझमें १९वें खण्डका अर्थ ऊपर लिखे अनुसार है और इस अर्थको देखते हुए हमें खण्डमें कोई आपत्तिकी बात दिखाई नहीं पड़ती। इस खण्डका अमल बहुत अत्याचारपूर्ण हो सकता है, लेकिन ऐसे तो बहुत-से खण्ड हैं। इस खण्डके अधीन सरकार प्रवासी अधिकारीको हमसे अंगुलियोंके निशान अथवा अन्य बेहूदी निशानियाँ लेनेकी शक्ति दे सकती है। लेकिन प्रवासी अधिकारीको यह शक्ति सरकारने इस खण्डकी रूसे नहीं दी है। इस तरहका खण्ड पुराने कानून में भी है। विनियम बनाकर उनके अधीन इस खण्डकी रूसे अगर सरकार अत्याचारपूर्ण प्रमाण माँगे तो निस्सन्देह हमें उसका विरोध करना चाहिए। लेकिन यह अलग प्रश्न है और वह १९वें खण्डसे उत्पन्न नहीं होता। कानूनके द्वारा ऊपर लिखे अनुसार यह अधिकार सरकारको मिलना चाहिए और इस सम्बन्धमें हम कोई आपत्ति नहीं उठा सकते। जबतक ऐसा अधिकार नहीं मिलता तबतक कानून अमलमें आ ही नहीं सकता। हमें इस कानूनके दुरुपयोगका विरोध निरन्तर करते रहना चाहिए। और हम ऊपर कह आये हैं कि उस तरह १९वें खण्डके अनुसार भी जो विनियम बनाये गये हैं उनमें हमें ऐसा कुछ नजर नहीं