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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२८]


देखने में आती है। शहरकी ऐसी जिन्दगी और नरकमे कोई फर्क नहीं हो सकता । पुरुष जबतक इस प्रकार राक्षस बना है तबतक स्त्रीको आराम नसीब हो ही नहीं सकता। कई पुरुष हैं जो इसमें स्त्रीको दोषी बताते हैं, परन्तु इस लेखका उद्देश्य' दोषोंकी तुलना करना नहीं है। दोष तो दोष ही है, चाहे वह एक पक्षका हो या दोनोंका। और उसे जान लेनेपर माता-पिताओंको. -किशोर वरों और बाला स्त्रियोंको सचेत हो जाना चाहिए। जबतक बाल-अवस्थामें विषय, गर्भावस्थामें विषय तथा बालकके जन्मके तुरन्त बाद किया जानेवाला भोग-विलास नहीं रोका जाता तबतक प्रसूतिका सुखपूर्वक होना असम्भव ही है। माताको अनेक बार अधिक कष्ट नहीं भोगना पड़ता और [प्रसूतिके बाद ] डेढ़ मास तक कमजोरी रहती है, ऐसी मान्यताके आधारपर स्त्रियाँ प्रसूतिके सर्वसाधारण कष्ट सहन कर लेती हैं, और उन्हें उस हालतका विस्मरण हो जाता है। अत: दिनों-दिन निस्तेज, निर्बल और नामर्द सन्तान उत्पन्न होती जाती है। यह परिणाम भयंकर है और इसकी रोकथामका अथक प्रयत्न सभीको करना चाहिए। यदि एक ही स्त्री या एक ही पुरुष इस अनाचारको त्याग सके तो उतना ही सही। इससे भी सारे जगतका लाभ है। यह कार्य ही ऐसा है कि इसमें किसीको किसीकी प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।

उपर्युक्त चर्चाके आधारपर पहली सावधानी तो यह हुई कि गर्भवती स्त्रीके साथ पुरुषका सहयोग एकदम बन्द किया जाये। इसके बाद आनेवाले नौ महीनोंमें स्त्रीपर अनेक जिम्मेदारियाँ हैं। इतना तो ध्यानमें रहना चाहिए कि बालकके चाल-चलनका आधार माताके इन नौ महीनोंके आचरणपर अवलम्बित है। माँ प्रेमल होगी तो बच्चा भी प्रेमल होगा। यदि माँ क्रोधी होगी तो बच्चा भी क्रोधी होगा। अतः इन नौ महीनोंमें स्त्रियोंको अपनी अन्तर्वृत्ति बहुत परिष्कृत रखनेकी जरूरत है। स्त्रीको इन दिनों पुण्य कृत्योंमें लगे रहना चाहिए। क्रोध नहीं करना चाहिए। दयाकी भावना बढ़ानी चाहिए। मनोवृत्ति उदार रखनी चाहिए । चिन्ता और भयसे मुक्त रहना चाहिए। पशुवृत्तिका तो मनमें प्रवेश भी नहीं होने देना चाहिए। निरर्थक बातोंमें समय नहीं बिताना चाहिए। असत्य-भाषण नहीं करना चाहिए। यदि इन सारे नियमोंका पालन किया जाये तो पैदा होनेवाला बच्चा तेजस्वी हुए बिना न रहेगा।

जैसे मनकी स्थितिको शुद्ध रखना जरूरी है, ठीक उसी प्रकार शरीरकी स्थिति भी शुद्ध रखनेकी जरूरत है। गर्भावस्थामें माताको अधिक श्वास लेना पड़ता है। अत: ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जहाँ हवा विशेष रूपसे अच्छी हो। अन्न नियमपूर्वक बढ़िया और सुपाच्य खाना चाहिए। पिछले प्रकरणोंमें सूचित स्वास्थ्यप्रद खुराककी योजना की जानी चाहिए। इस कालमें जैतूनका तेल, केले और गेहूँके बने पदार्थ जितने हजम हो सके उतने लेने चाहिए। यदि कब्ज हो तो दवाके लिए न दौड़कर जैतूनका तेल अधिक लेना चाहिए। यदि मतली होती हो तो पानीमें नीबूका रस -- बिना चीनीके - लेना चाहिए। मिर्च मसाले आदि तो इन नौ महीनोंमें त्याग ही दिये जाने चाहिए।

गर्भावस्थामें अनेक स्त्रियोंको रुचि-अरुचि और इच्छा-अनिच्छाकी प्रवृत्ति खूब होती है। इस प्रवृत्तिको दूर करनेका उपाय यह है कि स्त्रीको कटि-स्नान लेना चाहिए।