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९३. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२८]

८. प्रसूति

साधारण रोगोंके सम्बन्धमें हम विचार कर चुके हैं। इन प्रकरणों के लिखनेका हेतु यह तो नहीं है कि दुनिया-भरमें पाये जाने वाले सारे रोगोंके विषयमें लिखा जाये या जानकारी दी जाये। बल्कि हेतु कुछ प्रसिद्ध रोगोंके उपचारकी चर्चा करते हुए यह बता देना है कि सभी रोगोंका मूल कारण एक ही है और इसलिए उनका उपचार भी एक-सा ही है। जो लोग रोगोंसे घिरे हैं और मृत्युसे भयभीत है उनके हाथमें चाहे जैसी पुस्तकें दी जाये वे तो वैद्य-हकीमोंके पास जायेंगे ही। ये प्रकरण अधिकसे-अधिक इतना ही बता सकते हैं कि साधारण रोगोंसे पीड़ित मनुष्य किस प्रकार अच्छे हो सकते है और स्वास्थ्यके नियमोंका पालन करके पुनः बीमार पड़ने या किसी भयंकर रोगके फंदेमें पड़नेसे बचे रह सकते हैं। वैसे इतना कर सकनेकी हिम्मत भी थोड़े ही लोग कर सकते हैं। ऐसे कुछ लोगोंके लिए ही ये संक्षिप्त लेख उपयोगी हो सकते हैं। इन प्रकरणोंका यह भी एक हेतु है। अब हम बच्चा और जच्चाकी सार-मॅभाल तथा आकस्मिक दुर्घटनाओंकी थोड़ी चर्चा करके इन प्रकरणोंको समाप्त करनेकी स्थितिमें पहुँच जाते हैं।

प्रसूतिको हमने एक हौआ ही बना रखा है। जो नीरोग है उसके लिए प्रसूति बिलकुल खतरनाक नहीं होती। ग्रामीणोंके बीच तो यह मामूली बात मानी जाती है। उनमें गर्भवती स्त्रियाँ अन्ततक काम करती रहती हैं और बच्चेके जन्मके समय उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती। ऐसे उदाहरण भी देखने में आये है कि भरवाड़[१]स्त्रियाँ तो बच्चेको जन्म देकर तुरन्त ही काम करने लगती हैं। दूसरे प्राणियोंमें

तो हम देखते ही है कि माँको कोई विशेष कष्ट नहीं होता। तो शहरकी स्त्रियाँ ही क्यों कष्ट भोगती हैं ? बच्चेको जन्म देते समय उन्हें असह्य वेदना क्यों होती है। बच्चेके जन्मसे पहले और बादमें भी उनकी विशेष सार सँभाल क्यों की जाती है? हम जरा इन प्रश्नोंपर विचार करें।

शहरकी स्त्रीको रहन-सहन बिलकुल अस्वाभाविक होती है। उसकी खुराक, उसका पहनावा-ओढ़ावा प्राकृतिक नियमोंके एकदम विरुद्ध होता है; पर सबसे बड़ा कारण दूसरा ही है। जब किशोर अवस्थाकी बालिका गर्भ धारण करे, गर्भ धारण करनेके बाद भी पुरुष उसका सहवास न छोड़े और बच्चेका जन्म होनेपर ज्यों ही वह जच्चा-खाना छोड़े, उसके साथ पुनः वही व्यवहार जारी हो जाये, और परिणामस्वरूप कुछ ही समय बाद वह पुनः गर्भ धारण कर ले तो ऐसी स्थितिमें वह स्त्री दुःख क्यों नहीं भोगेगी? ऐसी भयानक और करुणाजनक हालत लाखों बालिकाओं और स्त्रियोंकी

  1. १. एक जाति-विशेष ।