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जोहानिसबर्ग में उपद्रव

हड़ताली नेताओंकी मुश्किलें तो अब शुरू हुई है। हड़तालियोंमें अनेक इन नेताओंको दोष देते है और कहते है कि सरकारने उनको धोखा दिया है। कुछ कहते हैं कि नेताओंने उनके साथ विश्वासघात किया है। कुछ अभी तक लड़ना चाहते है। नेताओंने जो किया है, उसे अधिकांश लोगोंने स्वीकार कर लिया है। भिन्न-भिन्न संघोंके मत लिये गये हैं। रेलवे में काम करनेवाले लोग भी पहले उत्तेजित थे, लेकिन बादमे शान्त हो गये। अनेक लोगोंका विचार है कि सरकार अपनी शर्तोंका किस तरह पालन करेगी, यह देखना चाहिए; और इस प्रकार दैनिक कामकाज शुरू हो गया है। मजदूरोंकी एक सभा हुई, जिसमें कहा गया है कि इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि जिस प्रकार सरकारने एशियाइयोंको धोखा दिया है, उसी प्रकार वह मजदूरोंको भी धोखा न दे। इस आशंकाके उत्तरमें एक नेताने कहा कि अगर मजदूर लोगोंमें बल कायम रहा तो सरकार विश्वासघात नहीं करेगी और करेगी तो अबकी बार इससे भी बड़े पैमानेपर हड़ताल की जायेगी।

सरकारके विशेष अनुरोधपर तथा इस बातका विचार करके कि लोगोंकी भावनाएँ उत्तेजित न हों, दोनों मुख्य समाचारपत्रोंने अबतक इस भयंकर हड़तालकी टीका करके इसके गुण-दोष नहीं बताये हैं।

इंग्लैंडमें श्री हरकोर्टपर दबाव डाला जा रहा है। दक्षिण आफ्रिकामे साम्राज्य-सरकारकी सेनाएँ तैनात हैं। ऐसा माना जाता रहा है कि इन सेनाओंका उपयोग इस कामके लिए नहीं किया जा सकता। इसलिए श्री हरकोर्टसे प्रश्न पूछा गया कि लॉर्ड ग्लैड्स्टनने इस सेनाका उपयोग कैसे किया? कुछ लोग ग्लैड्स्टनको दोष देते हैं। इस प्रकार, इस विद्रोहका इतिहास अभीतक पूरा नहीं हुआ है। अभी तो कोई नहीं कह सकता कि कौन जीता और कौन हारा? अनुमान किया जाता है कि लूटपाट और आगजनीकी घटनाओंसे जोहानिसबर्ग में लगभग पचास हजार पौंडकी हानि हुई। व्यापार, रेलवे, ट्रामों आदिको जो नुकसान हुआ वह अलग । अट्ठारह व्यक्तियोंकी मृत्यु हुई। कुल मिलाकर चार सौ व्यक्ति घायल हुए। अब भी लगभग दस घायल व्यक्ति चिन्ताजनक स्थितिमें अस्पतालमें पड़े हुए हैं।

[ गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, १२-७-१९१३

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