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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'स्टार' समाचारपत्रके कार्यालयमें गई। कई व्यक्ति खिड़कियाँ तोड़कर अन्दर घुस गये। समाचारपत्रोंका एक ढेर बनाकर उसमें आग लगा दी और पल-भरमे वह सुन्दर इमारत राख बन गई। यह समाचारपत्र बड़े संकट में पड़ गया है। मंगलवार तक वह प्रकाशित न हो सका। आग बुझानेवाले आये, लेकिन मजदूरोंने उन्हें लौटा दिया। उसके बाद उन्होंने गोला-बारूदकी दूकानको लूटा। वहाँसे बन्दूक और गोला-बारूद प्राप्त करके लड़नेको तैयार हो गये। अन्य दूकानें भी लूटी गई। तीन-चार भारतीय दूकानोंको भी लूटा गया। यह काम मजदूरोंका नहीं, बल्कि गुण्डोंका जान पड़ता है। अन्धेरगर्दी में कौन किसकी सुनता है ?

इस बीच सरकार चेत गई। जोहानिसबर्ग में जहाँ देखो वहाँ पुलिस हो गई। मुख्य इमारतोंपर पुलिस तैनात कर दी गई। शनिवार दोपहर को हड़तालियोंने रैड क्लबपर आक्रमण किया। पुलिसने उन लोगोंको धमकी दी, अनुरोध किया कारी नहीं माने। उनके सरोंसे ऊपर आसमानमें गोलियां चलाई गईं लेकिन वे नहीं डरे। इसपर पुलिसने सीधे उनके शरीरपर बन्दूकें तानी। गोलियोंकी बौछार हुई और उसमे अपराधी और निरपराधी दोनों ही तरहके व्यक्ति मारे गये। खूनकी धारा बह चली। अनेक व्यक्ति मरे और अनेक घायल हुए। रेड क्रॉसवाले आये और हताहतोंको अस्पताल ले गये। अब भय फैल गया। दौड़-भाग होने लगी। रैड क्लब बच गया। इस बीच किसीने अफवाह उड़ा दी कि श्री चडलेने क्लबमें से गोली चलाई थी। तुरन्त ही लोग प्रतिशोध लेनेके लिए उनकी महल-जैसी बड़ी दूकानपर गये। वहाँ उन्होंने खिड़कियोंके शीशे आदि तोड़ दिये और लूट-मार की।

इसी परिस्थितिमें जनरल बोथा और जनरल स्मट्स जोहानिसबर्ग आये। हड़तालियोंके नेताओंसे मिलकर उन्होंने सुलहनामा लिखवाया और उसपर दोनों जनरलोंने तथा हड़तालियोंके तीन नेताओंने हस्ताक्षर किये। समझौते में शर्ते इस प्रकार हैं : खानमें [ काम करनेवाले] मजदूर वापस लिये जायेंगे; अन्य हड़ताली मजदूरोंको भी वापस लिया जायेगा, हताहतोंकी जिम्मेदारी सरकार लेगी तथा जहाँतक बन पड़ेगा वह उनके सम्बन्धियोंको मुआवजा देगी। अन्य कष्टोंकी भी सरकार जाँच करेगी। मजदूर नेताओंने यह मांग भी की कि जिन व्यक्तियोंने जनताको उकसाया और लूटमारमें भाग लिया उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी। जनरल बोथाने कहा कि उनसे जो बन पड़ेगा, वे करेंगे। लेकिन न्यायमें दखल देनेके सम्बन्धमे वे वचन नहीं दे सकते। फिलहाल लगभग एक सौ व्यक्ति पकड़े गये हैं। श्रीमती फिट्ज़जेराल्ड भी गिरफ्तार कर ली गई है। समाचारपत्र निकलने बन्द हो गये थे। 'स्टार' के अतिरिक्त अन्य सभी [पत्र] मंगलवारसे निकलने लगे हैं। अन्य काम भी शुरू हो गये हैं और यह लिखते समय ऐसा लगता है, मानो जोहानिसबर्ग में कभी कुछ घटित ही न हुआ हो। मनुष्य अपने कष्टों और विपत्तिको कितनी जल्दी भूल जाता है !

सोमवारको जोहानिसबर्ग में शोक मनाया गया। झंडे झुका दिये गये, सारे मृतकोंको शामके चार बजे दफनाया गया। अनुमान है कि उनके पीछे लगभग तीस हजार व्यक्तियोंकी भीड़ थी। इन व्यक्तियोंकी आँखोंसे अभी कल ही खून टपक रहा था। सोमवारको ये ही लोग शोक में डूबे हुए, अर्थियों के पीछे-पीछे, धीमी चालसे चल रहे थे।