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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२७]

प्लेगके ज्वरकी उत्पत्ति क्यों होती है, यह अभीतक निश्चित नहीं है। अनेक लोगोंका मत है कि इसका प्रसार चूहोंके जरिये होता है। यह बात बेबुनियाद नहीं जान पड़ती। जहाँ प्लेग हो, वहाँ मकानको साफ रखनेकी जरूरत है। धान्य आदि इस प्रकार रखा जाये कि चूहोंको खानेको कतई न मिले तो वे आये ही नहीं। चूहों के बिल आदि बन्द कर दिये जायें और जिस घरसे चूहोंको न भगाया जा सके, उस घरको अवश्य छोड़ दिया जाये।

पर यह रोग हो ही नहीं, इसके लिए सर्वोत्तम बात तो यह है कि प्रारम्भ ही से पवित्र और शुद्ध खुराक ली जाये, मिताहार किया जाये, व्यसन छोड़ दिये जायें। व्यायाम किया जाये, खुले वायुमण्डलमें रहा जाये, घर आदिको स्वच्छ रखा जाये और अपनी स्थिति इस प्रकार रखी जाये कि प्लेगकी छूत हमे छू भी न सके। यह स्थिति हमेशा ही रखी जाये पर यदि यह सम्भव हो तो भी जिन दिनों प्लेग फैल रहा हो उन दिनों तो ऐसा किया ही जाना चाहिए।

ग्रन्थि-ज्वरसे भी भयंकर और उसीके साथ फूट पड़नेवाला रोग है [प्लेगकी दूसरी किस्म] हब्बा-डब्बा ज्वर जिसे अंग्रेजीमें “न्यूमोनिक प्लेग" कहते है। इसमें बीमारको श्वासोच्छ्वासमें बड़ी तकलीफ होती है। बुखार भी बड़ा तेज चढ़ता है। रोगी प्राय: बेहोश ही रहता है। इस काल-ज्वरसे तो मनुष्य किस्मतसे ही बच पाता है। इस प्रकारको महामारी जोहानिसबर्गमे १९०४ में फैली थी और कुल २३ रोगियोंमे से केवल एक रोगी बच पाया था। इसके बारेमें हम पहले कुछ बता चुके हैं। इस ज्वरके लिए भी ग्रन्थि-ज्वरवाले उपचार लागू पड़ते हैं। परन्तु इसमें मिट्टीकी पट्टी छातीके दोनों भागोंपर रखने की आवश्यकता है। यदि इतना समय भी न हो कि बीमारको गीली चादरको लपेट दी जाये तो उसके सिरपर मिट्टीकी पतली-पतली पट्टी रखी जाये। उपचारकी अपेक्षा इस रोगके रोकथामके उपाय ही सरल और सीधे हैं। ऊपर लिखे अनुसार उनका प्रयोग करना बुद्धिमानीकी बात होगी।

हैजेका रोग हमें अत्यन्त भयंकर जान पड़ता है; किन्तु वास्तवमें यह रोग प्लेगके आगे बहुत मामूली है। हैजेमे 'वेट शीट पैक' काम नहीं देता। कारण यह है कि रोगीके शरीरमें पहलेसे ही ऐंठन होती रहती है और उसकी पिंडलियों आदिमें गोले चढ़ते रहते हैं। ऐसे समय पेटपर मिट्टीकी पट्टी रखकर देखनी चाहिए। और जहाँ-जहाँ ऐंठन और गोले चढ़नेका भान होता हो वहाँ गर्म जलकी बोतलें रखनी चाहिए। बीमारके पैरों आदिपर सरसोंके तेलकी मालिश करनी चाहिए। खाना तो उसे दिया ही नहीं जा सकता। रोगी घबराने न पाये, अतः आसपासके लोगोंको चाहिए कि वे उसे हिम्मत बँधायें। यदि उसे लगातार दस्त हो रहे हों तो बार-बार खटियासे उठानेके बजाय खटियापर ही किसी उथले, बर्तनमें, जिसका किनारा तेज न हो, दस्त करा लेना चाहिए। यदि ये इलाज झटपट काममें लाये जायें तो रोगीको हानि पहुँचनेकी सम्भावना बहुत कम हो जाती है। हैजेके रोगसे बचनेके तो बड़े सीधे और सहज उपाय हैं। हैजा प्रायः गर्मियोंमें होता है। लोग एकदम कच्चे या सड़े हुए फल खा लेते हैं। साधारण तौरपर फल खानेकी हममें आदत नहीं है। गर्मियोंमें अनेक प्रकारके फल पकते