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९१. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२७]
७. अन्य संक्रामक रोग

शीतलाके सम्बन्धमें हम विस्तारपूर्वक विचार कर चुके। इसके बाद इसके मौसेरे भाई छोटी माता, मसूरिका आदि रह जाते हैं। प्लेग, हैजा और संक्रामक आँव-पेचिश आदि भी छूतके ही रोग है। छोटी माता और मसूरिका आदिसे हम इतना भय नहीं खाते, क्योंकि वे न तो इतने घातक होते है और न उनसे शरीर ही कुरूप हो जाता है। इसके सिवा और परिणाम तो शीतलाकी तरह ही होते हैं। उसका विष भी शीतलाकी तरह ही संक्रामक होता है। इन रोगोंके लिए ठंडे जलके उपचार, गीली चादरकी लपेट आदि अक्सीर इलाज है। इन बीमारियोंमें खुराक एकदम हलकी और सादी होनी चाहिए। यदि ताजे फलोंपर रहा जा सके तो ये रोग बड़ी शीघ्रतासे मन्द पड़ जाते है।

[प्लेग की] ग्रन्थि-ज्वर [वाली किस्म] एक भयंकर रोग है। अंग्रेजीमें इसे कहते हैं। सन् १८९६ से भारतमें लाखों लोग इस रोगके शिकार हुए है। यद्यपि भगदड़ खूब मची, पर डॉक्टर इसका कोई इलाज नहीं खोज पाये। आजकल इस रोगके लिए भी शीतलाकी तरह टीके लगाये जाते है और इससे लोगोंके शरीरमें प्लेगका हलका-सा बुखार पैदा किया जाता है। डॉक्टर लोग समझाते है कि ऐसा कर देनेसे प्लेग नहीं हो पाता। पर यह शीतलाके टीके-जैसा ही ढोंग है और उतना ही दोषपूर्ण है। जिसने शीतलाका टीका लगवाया है, यदि वह टीका नहीं लगवाता तो उसे रोग हो ही जाता, यह नहीं कहा जा सकता। ठीक इसी प्रकार प्लेगका टीका लगवानेवाला भी यदि टीका न लगवाये तो उसे प्लेग हो ही जायेगा, कोई दावेके साथ ऐसा नहीं कह सकता। अभीतक प्लेगकी कोई दवा ही नहीं है। और यह भी नहीं कहा जा सकता कि मिट्टी और पानीके प्रयोग इसमें कारगर ही हों। हाँ, जिन्हें मृत्युका भय नहीं है और जो ईश्वरपर आस्था रखते हैं उन्हें नीचे दिये उपाय सुझाये जा सकते हैं :

१. बुखार आते ही या प्लेगका कोई चिह्न दिखाई देते ही गीली चादरकी लपेट लेनी चाहिए।

२. गाँठपर मिट्टीका गाढ़ा लेप लगाया जाये।

३. रोगीको खाना बिलकुल न दिया जाये।

४. यदि खुश्की हो तो नीबूका पानी दिया जाये।

५. रोगीको खुली और स्वच्छ हवामें सुलाया जाये।

६. रोगीके पास एक मनुष्यके सिवा और किसीको न जाने दिया जाये।

७. रोगी यदि इलाजसे बच सकता है तो वह इस इलाजसे अवश्य बच जायेगा।