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दस जा सकता है कि आश्रमकी जीवन-पद्धतिने उन्हें कितना प्रभावित किया था; वे अब भारत में भी इसी जीवन-पद्धतिको अपनाये रखना चाहते थे । यह भी पता चलता है कि अपने 'राजनीतिक गुरु', गोखलेके प्रति उनका लगाव कितना गहरा था। भारत भूमिपर पैर धरनेके बाद गोखलेके सुझावपर उनका वर्षभर तक केवल अध्ययन और निरीक्षण में लगे रहना तथा अपनी कोई राय न देना - इसका साक्षी है । - दक्षिण आफ्रिका में गांधीजीके जीवन और उनकी सफलताओंके बारेमें- जिनसे सम्बन्धित साधन-सामग्री इन बारह खण्डों में संकलित की गई है - 'इंडियन ओपि- नियन'का 'स्वर्ण अंक' (परिशिष्ट २८) लिखता है : यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे सत्याग्रह-संघर्ष जोर पकड़ता गया और जैसे-जैसे वह पवित्रसे पवित्रतर होता गया, वैसे-वैसे वह यूरोपीय और भारतीय, दोनों समुदायोंके श्रेष्ठतम प्रतिनिधियोंको अधिकाधिक पास लाता गया। हर चरण अपने साथ एक नई विजय और नई मंत्री लेकर आता था । संघर्षका प्रारम्भ भारतीय समाजके प्रति सर्वत्र व्याप्त अविश्वास और तिरस्कारकी व्यापक भावनाके विरोधसे हुआ। अब उस अविश्वास और तिरस्कारका स्थान विश्वास और आदरकी भावनाने ले लिया है। .. यह आन्दोलन १९०७के ट्रान्सवाल अधिनियम २की मंसूखीकी माँग से प्रारम्भ हुआ । कानून मंसूख कर दिया गया और इसके समस्त दक्षिण आफ्रिकामें लागू कर दिये जानेकी जो आशंका उत्पन्न हो गई थी, उसका पूर्णतः निवा- रण हो गया । प्रारम्भमें भारतीयोंको इस उपनिवेश से निकाल बाहर करनेके उद्देश्यसे उनके विरुद्ध प्रजातिगत कानून बनाये जानेकी आशंका थी । समझौतेने साम्राज्यके किसी भी अंग में भारतीयोंके विरुद्ध प्रजातिगत कानून बनाये जानकी सारी सम्भावना समाप्त कर दी। गिरमिटिया मजदूरोंके रूपमें भारतीयोंका आव्रजन, जो दक्षिण आफ्रिकाके अर्थतंत्रका लगभग एक स्थायी अंग माना जाता था, समाप्त कर दिया गया है। घृणित तीन पौंडी कर समाप्त कर दिया गया है और उसके साथ ही उससे सम्बद्ध कष्टों और अपमानोंका भी अन्त हो गया है। निहित स्वार्थ- - जिनके सर्वत्र अस्त हो जानके आसार दिखाई दे रहे थे : - अब सुरक्षित और बरकरार रखे जानेको हैं । अधिकांश भारतीय विवाहोंको, जिन्हें पहले कभी भी दक्षिण आफ्रिकाके कानूनकी मान्यता प्राप्त नहीं थी, अब पूरी तरह कानूनी मान्यता दी जानेको है । परन्तु इन सबके अलावा जो बात सबसे महत्त्वपूर्ण है वह सत्याग्रहियोंकी कठिनाइयों, कष्टों और बलि- दानोंसे उद्भूत समझौते और मेलजोलकी नई भावना है। इस संघर्षने शक्तिकी तुलना में अधिकार, पशुबलकी तुलना में आत्म-बल और घृणा तथा अमर्षकी तुलना में प्रेम तथा विमर्शकी असीम श्रेष्ठताको अत्यन्त स्पष्ट रूपसे सिद्ध कर दिया है । " —— वैसे बादके इतिहासने यही सिद्ध किया कि दक्षिण आफ्रिकाकी जातीय समस्याका हल तब भी दूर था; लेकिन गांधीजीने आगे चलकर जिस अस्त्रके बलपर अपने देशकी जनताको मुक्ति दिलाई और साम्राज्यवादी युगकी परिसमाप्ति की, सत्याग्रहके उस अस्त्रका आविष्कार उन्होंने दक्षिण आफ्रिकामें ही किया और वहीं उसे कारगर बनाया था।