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पत्र: जमनादास गांधीको


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[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-९-१९१३

८९. पत्र: जमनादास गांधीको

ज्येष्ठ वदी १४, १९६९ [जुलाई २, १९१३]

चि० जमनादास,

साँपके काटने के बारेमें तुमने कुछ सवाल पूछे है और [इस प्रसंगमें] दूसरोंके अनुभवोंका उल्लेख किया है। इस सम्बन्धमें मैं जो-कुछ कहूँ, उसे अनुमान-मात्र समझना। उसमें कुछ भी अनुभवपर आधारित नहीं है। तुम्हें जो उदाहरण हाथ लगे हैं, वे बहुत महत्त्व देने लायक नहीं है। [झाड़-फूंक करनेवाला] आदमी अपना सिर. बड़े जोरसे दायें-बायें हिलाने लगता है. हो सकता है इस बातमें कुछ तथ्य हो। किन्तु ज्यादातर यह चीज ढोंग ही होती है। साँप और बिच्छूके काटनेके ऐसे इलाजोंके बारेमें भी मेरा यही खयाल है। सम्भव है, उसमें कुछ सत्य हो, किन्तु इस प्रकारकी खोजमें पड़ना मैं ठीक नहीं समझता। हमारी सारी प्रवृत्ति केवल आध्यात्मिक होनी चाहिए। सबकुछ - यहाँतक कि आरोग्य भी-- इसके भीतर आ जाता है। इतना निश्चित है कि जो व्यक्ति आत्माको खोजमें लगा हुआ है, उसे बाकी सब अपने-आप मिलता जाता है।

ऊनी कपड़े कई लोग बारहों महीने पहनते है। वे नॉन-कंडक्टर (विसम्वाहक) है सही, किन्तु गर्मी के महीने में ऊनी कपड़े पहनना ठीक नहीं, क्योंकि उससे शरीर नाजुक बनता है। शरीरको समशीतोष्ण रखने के बजाय यह ज्यादा अच्छा होगा कि हम उसे ऐसा बनाये कि वह गर्मी-सर्दी दोनोंको सह सके।

ईश्वर है भी और नहीं भी है। शाब्दिक अर्थकी दृष्टिसे वह नहीं है। जिस आत्माको मोक्ष प्राप्त हो गया है, वह ईश्वर है और इसलिए उसे सम्पूर्ण ज्ञान है। भक्तिका सच्चा अर्थ तो आत्माकी खोज है। जिस समय आत्मा अपनको पहचान लेता है, उस समय भक्तिका लय हो जाता है और उसके स्थानमें ज्ञान प्रकट होता है।

नरसी' आदि भक्तोंने आत्माकी ऐसी ही भक्तिपूर्ण खोज की थी। कृष्ण, राम आदि अवतार थे, किन्तु हमारे पुण्य भी यदि उसी कोटिके हों, तो हम भी उन-जैसे हो सकते हैं। जो आत्मा मोक्ष-प्राप्तिकी सीमापर पहुँच गया है, वह अवतार-रूप है। किन्तु, यह माननेका कोई कारण नहीं है कि उसने अपने उसी जन्ममें सम्पूर्णता प्राप्त कर ली है।

१. गुजरातके सन्त कवि नरसी मेहता ।