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पत्र : गृह-सचिवको


शब्दकी जो परिभाषा की गई है, उसका इन भारतीयोंपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि हम नेटालमें प्राप्य सबसे अच्छी कानूनी सलाह ले चुके हैं; उसके अनुसार ऐसे भारतीय इस परिभाषाके अन्तर्गत नहीं आते और नये कानूनका उनके अधिकारोंपर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। फिर भी, मैं अपने देशभाइयोंको यह सलाह देनेकी जिम्मेवारी अपने सिरपर नहीं लेना चाहता कि वे सिर्फ इस कानूनी सम्मतिको मानकर चलें। मेरी हादिक इच्छा है कि भविष्यमें सामने आनेवाले जिन मुद्दोंका पूर्वाभास कमसे कम मुझे हो जाये, उनपर विचार किये बिना अथवा उन्हें पूरी तरह समझे बिना नहीं छोड़ा जाना चाहिए। फिर भी, यदि सरकार "अधिवास" शब्दकी वैसी ही व्याख्या करती है जैसी कानूनी सलाहकारने की है तो इस आशयका कोई आश्वासन दे देनेसे यह मामला तय हो जाता है। अब मैं यह बात आपके सामने अपनेतई साफसे-साफ शब्दोंमें रख दूं। हम गिरमिटिया भारतीयोंको कोई नया हक दिलानेकी कोशिश नहीं कर रहे हैं; किन्तु हम उनके वर्तमान अधिकारको पूर्ण रूपसे सुरक्षित रखने के लिए उत्सुक हैं। और भारतीयोंकी मान्यताके अनुसार यह अधिकार इस प्रकार है : यदि कोई ऐसा गिरमिटिया भारतीय जिसने सन् १८९५के बाद सेवाका अनुबन्ध किया है - अपने अनुबन्धकी अवधि समाप्त होनेपर मुक्त हो जाता है और फिर दुबारा गिरमिटमें बंधे बिना तीन साल तक इस प्रान्तमें रहता है और फिर भारत जाकर पुनः वापस आता है तो उसे नेटालके मौजूदा प्रवासी कानूनके अन्तर्गत, अपने तीन वर्षके निवासके आधारपर, इस उपनिवेशमें प्रवेश करनेका अधिकार है।

३. फ्री स्टेटके सम्बन्धमें मैंने आपका ध्यान जनरल स्मट्ससे प्राप्त एक पत्रकी ओर दिलाया था। इस पत्रमें उन्होंने बताया है कि उनके विचार सम्भवतः फी स्टेटमें ज्ञापनकी जरूरत नहीं है। यदि सरकारके कानूनी सलाहकारोंके अनुसार कानूनी स्थिति ऐसी ही है तो इस आशयका एक वक्तव्य प्रकाशित कर देनेसे यह कठिनाई दूर हो जायेगी। अब मैं यह निवेदन करनेकी घृष्टता करता हूँ कि नये कानूनके खण्ड १९ के अनुसार जिस ज्ञापनकी आवश्यकता होगी, सम्भव है कि उसके पीछे, पर नये कानूनके खण्ड २८ के साथ-साथ, अन्य सारी निर्योग्यताएँ भी छपी रहें। उस अवस्थामें किसी ब्रिटिश भारतीयको फ्री स्टेटके लिए प्रवासी करार देते समय इस ज्ञापनकी कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।

४. विवाहके प्रश्नके सम्बन्ध निवेदन यह है कि सर्ल-निर्णयको ध्यानमें रखते हुए संघमें हुए या होनेवाले भारतीय विवाहोंको कानूनी करार देना आवश्यक है। नये कानूनकी विवाह-सम्बन्धी धारामें से “संघके बाहर" शब्द-समुच्चयको निकालकर, इस कानूनको संशोधित कर देनेसे उक्त उद्देश्य पूरा हो जा सकता है। या फिर इसका एक उपाय यह भी हो सकता है कि विभिन्न प्रान्तोंके विवाह-कानूनोंमें संशोधन करके सरकारको विभिन्न सम्प्रदायोंके लोगोंके लिए विवाह-अधिकारी नियुक्त करनेकी सत्ता

१. देखिए परिशिष्ट १ ।