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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं अपने साथी कार्यकर्ताओंको कोई सलाह देनेसे पहले आपका उत्तर जान लेना चाहता हूँ। इसलिए उत्तर तारसे देनेकी कृपा करें।

आपका विश्वस्त,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५८११) की फोटो-नकलसे।

८८. पत्र : गृह-सचिवको

[जोहानिसबर्ग]
जुलाई २, १९१३

महोदय,

आज सुबह मेरी और आपकी जो बातचीत हुई थी, उसके मुद्दोंको मैं आपकी इच्छानुसार लिखित रूप दे रहा हूँ:

१. दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयों और केप प्रवासी कानूनके अन्तर्गत उनके केपमें प्रवेश करनेके अधिकारके सम्बन्धमें मेरा विचार यह है कि नये कानूनके खण्ड ५के अन्तर्गत इसी खण्डके उपबन्धके कारण ऐसे लोग प्रवेश नहीं पा सकते। यदि सरकारका मन्शा, अबतक की भाँति, उनके अधिकारको उसी हालतमें मान्यता देनेका है जब वे दक्षिण आफ्रिकामें अपना जन्म सिद्ध कर दें तो वह इसे, कोई नया कानून पास किये बिना, ऐसे विनियम बनाकर भी कर सकती थी, जो उन्हें इस कानूनके खण्ड १की धारा (क) के प्रभावसे बरी कर देते। ध्यान देनेकी बात है कि यदि ऐसे भारतीय केपकी साधारण शैक्षणिक परीक्षा पास कर लें तो वे धारा ५के उपखण्ड के अनुच्छेद (क) के अनुसार इस प्रान्तमें प्रवेश कर सकते हैं। आप जानते ही है कि उपनिवेशमें जन्मे अधिकांश भारतीय गवर्नमेंट इंडियन स्कूलोंकी शिक्षा समाप्त कर चुके हैं और उनमें केप-परीक्षामें बैठनेको पर्याप्त योग्यता है। यह भी सुविदित है कि जबसे केप-कानून लागू है तबसे दक्षिण आफ्रिका में उत्पन्न शायद ही किसी ऐसे भारतीयने, जो केप प्रान्तका न हो, वहाँ जाकर बसनेका प्रयत्न किया हो। कारण यह है कि वहाँ उसके लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है।

२. जैसा कि मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ, सन् १८९५के संशोधन कानूनके अन्तर्गत नेटालमें प्रवेश करनेवाले गिरमिटिया भारतीयोंके सम्बन्धमें नेटालकी अदालतोंने यह मत व्यक्त किया है कि अपने गिरमिटकी अवधि समाप्त कर लेनेपर ये लोग नेटालमें बसनेको स्वतन्त्र है, और यदि ये अपनेको दुबारा गिरमिटबद्ध न करते तो भी इन्हें निषिद्ध प्रवासी नहीं माना जा सकता। अदालतोंने यह भी कहा है कि तीन वर्षके गिरमिट-मुक्त निवासके बाद उन्हें अन्य भारतीयोंकी भाँति अधिवासके अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। किन्तु ऐसा लगता है कि इस वर्तमान कानूनमें “अधिवासी"

१. इस पत्रके वाद २ जुलाईको दोनोंकी भेंट भी हुई थी। गांधीजीने चर्चा में उठे मुद्दोंको लिखित रूप दे दिया था; देखिए अगला शीर्षक ।