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पत्र : गृह-मन्त्रीके निजी सचिवको



परन्तु तब क्या वह अधिनियमकी व्यापार करने या जमीन रखनसे सम्बन्धित धाराओंको लागू करना चाहती है ?

विवाहके प्रश्नके बारेमें मैंने जो कठिनाई बताई है वह मेरी विनम्र सम्मतिमें स्पष्ट और विचारणीय है।

जनरल स्मट्स और मेरे बीच हुए पत्र-व्यवहारके[१]अन्तिम मुद्दे के सम्बन्धमें यह सन्देह प्रकट किया गया था कि आसंरक्षण-सम्बन्धी धाराके बावजूद क्या ऐसे भारतीयोंको भी परिच्छेद ३३के खण्ड ८ में उल्लिखित हलफनामा देना पड़ेगा जिनको नये अधिनियमके अन्तर्गत इस प्रान्तमें प्रवेश करनेकी अनुमति दी जा सकती हो। मैं समझता हूँ कि फ्री स्टेटके लोग भी यह नहीं चाहते कि भारतीय प्रवासीसे अपमानजनक हलफनामा मांगा जाये; बल्कि यह चाहते है कि उसे जमीन रखना, तथा खेती या व्यापार करना कानूनी तौरपर मना हो। यदि कानूनमें ही खास तौरसे इसका उल्लेख कर दिया जाये, तो उनका उस धाराको निकालने पर आपत्ति करना उचित नहीं होगा, जिसके अन्तर्गत हलफनामा देना आवश्यक है।

फिलहाल, और समझौतेके उद्देश्यसे, मैं सर्वोच्च न्यायालयका क्षेत्राधिकार हटानेका(मैं मानता हूँ कि अब यह आंशिक रूपसे ही हटता है ) और अधिनियमकी उन दूसरी कड़ी धाराओंका प्रश्न नहीं उठाता जिनके कारण यह अधिनियम पहलेके उन प्रान्तीय कानूनोंके मुकाबले बहुत ज्यादा अनुदार हो जाता है जिनकी जगह इसे रखा जा रहा है।

यदि श्री फिशर समझते हों कि सरकारके लिए भारतीय समाजकी बात मानना और अगले वर्ष आवश्यक संशोधन करनेका आश्वासन देना सम्भव है और यदि उनका खयाल हो कि इन मुद्दोंपर स्वयं मुझसे बातचीत करना कुछ भी लाभप्रद है तो मैं उनसे खुशीसे मिलूंगा। आशा है, श्री फिशर मेरे पत्रपर उसी भावनासे विचार कर सकेंगे जिस भावनासे मैने उसे लिखा है। मैं उन्हें विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मेरी इच्छा कोई बड़ा संकट उत्पन्न करनेकी नहीं है; किन्तु यदि सरकार और भारतीयों के बीच समझौता न हो सका तो निश्चय ही संकट उत्पन्न हो जायेगा।

यदि भेंट होती है तो उसमें इसपर बातचीत करना आवश्यक होगा कि यदि विवाह एक-पत्नीक विवाह नहीं है तो उन विवाहिता स्त्रियोंके प्रवेशमें और शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशको नियन्त्रित करनेके तरीकेके सम्बन्धमें अधिनियमपर कैसे अमल किया जायेगा। पत्र बहुत लम्बा न हो जाये, इसलिए और इसलिए भी कि मेरा खयाल है कि यदि कानूनको ही सुधारा जा सके तो उसपर किये जानेवाले अमलको सुधारना अपेक्षाकृत सुगम है, यहाँ मैं इन मुद्दोंपर विचार नहीं करता।

कहनेकी जरूरत नहीं कि पूरा पत्र यह मानकर लिखा गया है कि सरकार और मेरे बीच तारों या पत्रों द्वारा जिन अधिकारोंके बारेमें चर्चा हो चुकी है उनके अतिरिक्त अन्य किसी भी वर्तमान अधिकारमें यह अधिनियम कोई हेरफेर नहीं करता।[२]

  1. १.देखिए खण्ड ११ ।
  2. २. लगता है कि गांधीजीने यह पैरा बादमें अपने ही हायसे जोड़ा था