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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दूर कर दी जाये, तो सरकारकी नीतिमें कोई परिवर्तन हुए बिना भी समझौतेकी शौका मेरे देशवासी उसका जो अर्थ समझते हैं उस अर्थ में पालन, केवल पालन हो जायेगा।

उक्त चार मुद्दे निम्नलिखित है :

(१) इसमें "अधिवासी" (डोमिसाइल) शब्दकी जो परिभाषा की गई है उसके अनुसार, जान पड़ता है, १८८५ का भारतीय प्रवासी कानून संशोधन अधिनियम लागू होने के बाद आये हुए भारतीय गिरमिटिये और उनके वंशज निषिद्ध प्रवासी हो गये हैं

(२) यदि उक्त व्याख्या ठीक हो तो दक्षिण आफ्रिकामें जन्म लेनेपर भी इस श्रेणीमें आनेवाले वंशज आगेसे केप प्रान्तमें प्रवेश नहीं कर सकेंगे।

(३) जो स्त्रियाँ दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय धार्मिक विधियोंके अनुसार ब्याही गई है और फिर जो भारत जानेके बाद वहाँसे अपने पतियोंके साथ लौटेंगी उनका दर्जा वही नहीं होगा जो भारतमें ही [विवाहित ][१] स्त्रियोंका होता है। और न इस संशोधन में उन सैकड़ों स्त्रियों के लिए ही कोई व्यवस्थाकी गई है जो गैर-ईसाई धर्मोके अनुसार ब्याही गई हैं।

(४) जान पड़ता है, फ्री स्टेटकी कठिनाई जैसी पहले थी वैसी ही बनी रहेगी।

पहले मुद्देके बारेमें इस तथ्यको ध्यानमें रखते हुए कि मन्त्री महोदयने दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंके केपमें प्रवेश करनेके अधिकारको मान्यता दी है, बशर्ते कि वे दक्षिण आफ्रिकाके अधिवासी भारतीय माता-पिताओंकी सन्तान हों, पर उन गिरमिटिया माता-पिताओंकी सन्तान न हों जो १८९५ का नेटाल अधिनियम १७ लागू होनेके बाद गिरमिटमें बँधे थे।[२] मुझे लगता है कि यदि सरकार १८९५ का अधिनियम लागू होनेके बाद गिरमिटमें बँधनेवाले भारतीयोंकी दक्षिण आफ्रिकामें जन्मी सन्तानके दर्जेको भी मान्य कर ले तो यह उसके लिए एक मामूली बात होगी। मुझे विश्वास है कि सरकारका मन्शा न उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंमें इस प्रकार विभेद पैदा करना है और न ऐसे गिरमिटिया भारतीयोंके अधिवासके अधिकारको मान्यता दे देनसे सरकारको नीतिपर ही कोई प्रभाव पड़ता है। ऐसे भारतीयोंकी संख्या सात हजारसे ऊपर नहीं हो सकती। सच कहें तो, यह संख्या नेटालकी भारतीय आबादीकी लनामें, जो १,३३,००० कूती जाती है, कोई खतरनाक स्थायी वृद्धि नहीं मानी जा सकती, खास तौरसे इस बातको ध्यानमें रखते हुए कि इन लोगोंकी जरूरत नेटालके यूरोपीयोंको है।

भारतीय समाजके लिए पहले और दूसरे, दोनों ही मुद्दे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। यदि ये लोग तीन पौंडी वार्षिक कर दे रहे हैं, तो नेटालकी अदालतोंके फैसलेके अनुसार इनको नेटालमें स्थायी निवासीके रूपमें रहनेका अधिकार है। क्या वे अब निषिद्ध प्रवासी माने जायेंग? मेरा खयाल है कि सरकार उन्हें निर्वासित नहीं करना चाहती;

  1. १. यहाँ मूलमें शम्द साफ पढ़ने में नहीं आता ।
  2. २. मूलमें ही वाक्य अपूर्ण रह गया जान पड़ता है।