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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

३. यह लस मूलमें मनुष्य के रक्तसे बना है, अत: यह सम्भव है कि उस सारे लसमें उस मनुष्यके दूसरे रोगोंके कीटाणु हों।

४. टीका लगानेसे मनुष्य रोगमुक्त हो ही जाता है, यह विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता। इसके आविष्कारक डॉ. जेनरका प्रारम्भमें यह कहना था कि एक हाथमें एक दाना खुदवानेसे मनुष्य सदाके लिए रोगमुक्त हो जाता है। फिर कहने लगे कि दोनों हाथोंपर टीका लगानेसे मुक्त हो जायेगा। इसके बाद दोनों हाथोंमें एक-एकसे अधिक दाने खुदवाये जाने लगे। और जब इतना कर लेनेपर भी रोग होने लगा तब यह माना जाने लगा कि एक बार चेचक निकलवा लेनेके बाद सात वर्षसे अधिकके लिए [ इस रोगसे ] मुक्तिका विश्वास नहीं दिलाया जा सकता; और अब सातके बदले तीन वर्ष माने जाते हैं। इस प्रकार स्वयं डॉक्टर ही कुछ निश्चित नहीं कह सकते। दरअसल चेचकका टीका लगवानेवाले व्यक्तिको चेचक कदापि नहीं निकलेगी, यह बात तो मिथ्या ही है। टीका लगवा चुकनेपर जिन्हें चेचक नहीं निकली यदि वे टीका न लगवाते तो उन्हें चेचक निकल ही आती, यह भी कोई साबित नहीं कर पाया।

५. अन्तमें वे कहते हैं कि [शरीरमें ] इस लसका प्रवेश करवाना एक घृणित रिवाज है। गन्दगीके द्वारा गन्दगी दूर की जा सकती है ऐसी मान्यता मूर्खतापूर्ण है।

इस प्रकार अनेक दलीलों और उदाहरणोंके द्वारा उपर्युक्त संस्थाने अंग्रेज जनताके मनको प्रभावित किया है। इंग्लैंडका एक ऐसा शहर है कि जहाँकी आबादीका एक बहुत बड़ा भाग चेचकका टीका बिलकुल नहीं लगवाता और इस हिसाबसे उस शहरकी जनतामें यह रोग कम नजर आता है। इस संस्थाके लगनशील सदस्योंने यह साबित कर दिखाया है कि चेचकको लेकर यह भ्रम बनाये रखने में डॉक्टरोंका स्वार्थ है। उन लोगोंको प्रतिवर्ष जनताकी ओरसे हजारों पौंड टीका लगानेके कार्य में मिल जाते है। अत: जाने या अनजाने चेचकके टीके द्वारा होनेवाली हानिको वे देख नहीं पाते। कई डॉक्टरोंने तो स्वयं यह मत जाहिर किया है और उन्हींमें बहुतेरे ऐसे हैं जो चेचकके टीकेके सख्त खिलाफ हो चुके हैं।

चेचकका टीका यदि इस प्रकार हानिकर है तो हमें उसे क्यों लगवाना चाहिए? इसका जवाब में तो निर्भयतापूर्वक “ना” कहकर ही दूंगा। इतना होते हुए भी इसमें अपवाद तो है ही। जान-बूझकर अपनी मर्जीसे किसीको भी टीका नहीं लगवाना चाहिए, इतना तो मैं दृढ़ताके साथ कह सकता हूँ। पर जहाँ-जहाँ हम निवास करते है वहाँ चेचक निकलवाना कानूनन जरूरी है। इस मुल्कमें (आफ्रिकामें) यह कानून तोड़ना एक बड़ी जोखिम उठाने-जैसा होगा। क्योंकि यदि हम उसका विरोध करें तो हमारे सिर जान-बूझकर सार्वजनिक स्वास्थ्यको जोखिममें डाल देनेका इलजाम मढ़ दिया जायेगा- पहलेसे जो इलजाम है सो तो है ही। अत: ऐसी स्थिति में अपना फर्ज क्या हो सकता है ? जहाँ आबादीका एक बड़ा हिस्सा चेचकके टीकेको कानूनन मानता है और हम उसी इलाके में रहते हों तो उस इलाकेका भय दूर करनेके लिए वहाँके जैसा प्रचलित इलाज करवाना हमारा फर्ज हो जाता है। और जो लोग