मैं सीखना चाहता हूँ, और जो मुझे अवश्य सीखना है। यदि मैं कुछ बातोंमें गलतीपर हूँ तो अपना भ्रम दूर करना चाहूँगा और यदि मैं ठीक हूँ, किन्तु हम परस्पर सहमत नहीं है तो मैं चाहता हूँ कि वह भ्रम भी दूर हो जाये। यदि मुझे आपका
कोई पत्र न मिले तो भी आपके सम्बन्धमें मुझे कोई गलतफहमी नहीं होगी। किन्तु जब-कभी आपके पास समय हो और आप स्वस्थ हों, तो मैं आपके पत्रों और परामर्शका स्वागत करूँगा और उन्हें मूल्यवान समझूगा। उनसे मुझे सान्त्वना मिलेगी।
श्री हॉलका पत्र मिलनेके बाद मैंने यह निश्चय किया था कि आपको सीधा पत्र न लिखूगा; किन्तु आपका पत्र आनेपर मेरे सामने कोई रास्ता नहीं बचा।
पोलकके नाम आपके तारके सम्बन्धमें मुझे दूसरा पत्र लिखना होगा। यदि किसी तरह आना सम्भव हुआ तो वे आ जायेंगे। मुख्य विचार दो बातोंका है- -पैसेका, और उनके परिवारका। उनसे कल सारी स्थितिपर बातचीत होगी और फिर उन्हींपर छोड़ दूंगा कि वे डर्बन लौटनेपर आपको पत्र लिख दें। चिट्ठियाँ रवाना करनेके लिए मेरी अपेक्षा उन्हें एक दिन अधिक मिलेगा।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ९२८) से।
सौजन्य : सर्वेट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी।}}
८४. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२५]
६. संक्रामक रोग [जारी] : शीतला-२
शीतलाके टीकेसे होनेवाले दुष्परिणामोंके सम्बन्धमें इंग्लैंड में अनेक विचारशील लोगोंने खोज की है और इसके विरोधमें अभी वहाँ एक मंडलकी स्थापना हुई है। इस मंडलके सदस्य शीतलाका टीका नहीं लगवाते। शीतलाका टीका लगवानके अनिवार्य कानूनका ये लोग विरोध करते हैं। कई तो इसके लिए जेल भी जा चुके हैं। वे दूसरोंको भी समझाते हैं कि शीतलाका टीका न लें। इस सम्बन्धमें अनेक पुस्तकें भी लिखी गई हैं, और अनेक वाद-विवाद चल रहे हैं। शीतलाके टीकेका विरोध करनेके जो कारण दिये जाते हैं वे निम्न प्रकार है:
१. गायके थनसे जिसपर वास्तवमें बछड़ेका हक है, लस निकालनेकी क्रिया द्वारा लाखों जीवित पशुओंके साथ महान क्रूरताका व्यवहार किया जाता है। यह निर्दयता मानवकी दयावृत्तिको शोभा नहीं देती, अतः उस लससे कुछ लाभ भी होता हो तो भी उसे त्याग देना चाहिए। मनुष्यमात्रका यह कर्त्तव्य है। .
२. इस लससे लाभ नहीं होता, इतना ही नहीं, बल्कि इसे लेनेसे मनुष्यके शरीरमें दूसरे रोग भी उत्पन्न हो जाते है। उनकी मान्यता है कि शीतलाके टीकेका प्रचलन होनेके बाद दूसरे रोग अधिक फैले हैं।