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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


और अब आपके प्रश्नोंके बारेमें। १. आपने देख ही लिया होगा कि विधेयकपर सम्राट्ने स्वीकृति दे दी है।

२. सत्याग्रह शायद अगले महीनके शुरूमें आरम्भ किया जायेगा।

३. अपनेको गिरफ्तार कराने और जेल जानेके लिए हम नये अधिनियमको तोड़कर सब प्रान्तोंमें प्रवेश करेंगे और प्रमाणपत्र या अन्य कोई कागज नहीं दिखायेंगे। संघर्ष में शिक्षित और अशिक्षित सभी लोग भाग लेंगे।

४. मैं इस समय जहाँतक समझ सकता हूँ, संघर्ष १३ स्त्रियों और १०० पुरुषोंसे शुरू होगा। सम्भव है, बादमें संख्या बढ़ती जाये। ५. बहुत रुपया इकट्ठा होनेकी आशा तो नहीं है; किन्तु पर्याप्त मात्रामें खाना और कपड़ा माँगकर इकट्ठा करने में मुझे कोई कठिनाई दिखाई नहीं देती। यदि हम सब जेल चले गये तो माँगनेका जिम्मा खुद कैलेनबैकने लिया है। इसका पूरा भरोसा किया जा सकता है कि जबतक उनके शरीरमें प्राण हैं, वे एक भी परिवारको भूखा नहीं रहने देंगे। यदि भारत या दूसरी जगहोंसे बिना माँगे रुपया नहीं आता तो हम पैदल जायेंगे आयेंगे और तब तारों और केबिलो (समुद्री तारों) पर बिलकुल पैसा खर्च न किया जायेगा। इस समय जोहानिसबर्गका सारा सार्वजनिक कार्य कुमारी श्लेसिन करती हैं। किन्तु अपनी आजीविकाके लिए वे दूसरी जगह काम करती है। मैं लन्दन-समितिके लिए विशेष रूपसे पैसा इकट्ठा कर रहा हूँ जो आपकी मर्जीपर रहेगा। मैं दूसरे आर्थिक रूपसे भी मुक्त हो रहा हूँ। 'इंडियन ओपिनियन' के कर्मचारियोंकी संख्या न्यूनतम कर दी गई है और वे अपने साधनोंपर गुजारा करने लगेंगे। मेरी कुछ व्यतविगत जिम्मेदारियाँ डॉक्टर मेहता[१] पूरी कर रहे हैं।

६. संघर्षके एक साल तक चलनेकी आशा है; किन्तु यदि हमारे पास मेरे अनुमानसे अधिक लोग हुए तो सम्भव है, यह संघ-संसदके अगले अधिवेशन तक ही बन्द हो जाये। हम तो ऐसा मानकर तैयारी कर रहे हैं कि लड़ाई लम्बी चलेगी।

७. समाजको इस संकटमें से निकाल ले जानेके लिए कितने पैसेकी आवश्यकता होगी, इस प्रश्नका उत्तर देना कठिन है। मैंने जो न्यूनतम अनुमान किया है, उसके अनुसार नकद पैसेकी हमें कोई जरूरत नहीं होगी। किन्तु मुझे जब पैसा मिलेगा, मैं उसका उपयोग संघर्षको जल्दी खत्म करने और परिवारो एवं 'इंडियन ओपिनियन'को सहायता देने में करूँगा। नेटाल और केपके कुछ लोग संघर्षमें निश्चय ही सम्मिलित होंगे।

आपसे मेरी प्रार्थना यह है : कृपया हमारे बारेमें चिन्ता न करें, सार्वजनिक रूपसे धन न माँगें और इस कार्यके लिए अपने स्वास्थ्यको हानि न पहुँचायें। इस प्रार्थनामें मेरा स्वार्थ है। मैं आपसे भारतमें प्रत्यक्ष रूपसे मिलने, आपके अधीन काम करने, और कहूँ तो, आपके चरणोंमें रहकर वह सब सीखनेके लिए उत्सुक हूँ जो

  1. १. डॉ. प्राणजीवन मेहता; जब गांधीजी लन्दनमें विद्याध्ययन कर रहे थे, तभीसे उनके मित्र ।