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८३. पत्र: गो० कृ० गोखलेको

फीनिक्स
नेटाल
जून २०, १९१३

प्रिय श्री गोखले,

यह विधेयक बहुत बुरा है; और इसके विरोधमें सत्याग्रह करना आवश्यक है। आपको यह पत्र मिलते-मिलते शायद हममें से कुछ लोग जेल पहुँच जायें। मेरा इरादा अगले हफ्ते जोहानिसबर्ग जानेका है। वहाँसे अपनी आपत्तियोंके बारेमें मैं एक अन्तिम पत्र श्री फिशरको लिखूगा और अनुरोध करूँगा कि उन आपत्तियोंको अगले साल दूर कर दिया जाये। यदि वे ऐसा करनेका एक निश्चित, लिखित वचन दे देंगे तो संघर्ष स्थगित कर दिया जायेगा। वे ऐसा वचन देंगे, इसकी आशा बहुत कम है। अब जो संघर्ष होगा, वह निःसन्देह बहुत ही भयंकर होगा और लम्बा चलेगा, इसलिए पेश्तर इसके कि मैं अपने साथी सत्याग्रहियोंसे संघर्ष आरम्भ करनेके लिए कहूँ, मैं संघर्षके पुनरारम्भके कारण आनेवाले दुःखोंको टालनेके लिए बुद्धिसम्मत सभी वैध तरीकोंको अपनाना चाहता हूँ।

विधेयकमें निम्नलिखित दोष हैं:

(१) जान पड़ता है कि [इसमें] फ्री स्टेटकी कठिनाई जैसीकी-तैसी छोड़ दी गई है और इसीलिए जातीय भेदभाव भी बना रहेगा।

(२) वर्तमान अधिकारोंमें बाधा आती है, क्योंकि

(क) सर्वोच्च न्यायालयमें अपीलका अधिकार बदल दिया गया है। (ख) दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंका केपमें प्रवेशका अधिकार छीन लिया गया है। (ग) कर . .[१] देनेवाले भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीयोंका अधिवासका अधिकार छीन लिया गया मालूम होता है।

(घ) विवाहोंकी वर्तमान स्थिति बहुत-कुछ बदल गई है, यद्यपि संशोधनसे उत्तेजनामें बहुत कमी हुई है।

मुझे अभी-अभी श्री नाइनरकी कृपासे संशोधित विधेयक मिला है। सम्भव है, इसमें दूसरे दोष भी हों। मैं आपको अगले हफ्ते पूरा वक्तव्य[२] तैयार करके भेजूंगा। खत बहुत लम्बा न हो जाये इसलिए मैं ऊपर बताये गये मुद्दोंको यहाँ स्पष्ट नहीं करूँगा।

  1. १. यहाँ मूल पढ़ा नहीं जा सका ।
  2. २. यह उपलब्ध नहीं है; देखिए “ पत्र : गृह-मन्त्रीके निजी सचिवको", पृष्ठ ११५-१८ ।