अपेक्षा यह पसन्द करेगा कि उसे हजार बार शीतला निकले या एकाएक मृत्यु हो जाये।
इंडियन ओपिनियन, १४-६-१९१३
८२. तार : गवर्नर-जनरलको
जोहानिसबर्ग
जून १६, १९१३
[गवर्नर-जनरल
संसदमें प्रवासी विधेयकके पास होनेकी बातको ध्यानमें रखते हुए मेरा संघ आपका ध्यान भारतीय समाजकी दृष्टिसे इन आपत्तियोंकी ओर आकर्षित करना चाहता है। विधेयक अस्थायी समझौतेपर अमल नहीं करता। वह समझौतेके विपरीत मौजूदा अधिकारोंका अपहरण करता है। सर्वोच्च न्यायालयमें अपील करनेके मौजूदा अधिकारमें कटौती करता है। तीन सालके पूर्व-निवासके बलपर नेटालके निवासी भारतीयोंको उस प्रान्तमें फिर प्रवेश करनेकी जो सुविधाएँ अभी है उनसे उन्हें वंचित करता है। जिन्होंने तीन-पौंडी कर दे दिया है, उन गिरमिटिया भारतीयोंको भी इस विधेयकके अन्तर्गत प्रान्तमें निवासका हक नहीं होगा। दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंको केपके वर्तमान कानूनके अन्तर्गत केपमें प्रवेश करनेका जो अधिकार है यह उसे छीनता है। फ्री स्टेटकी समस्या पहले-जैसी ही है क्योंकि शिक्षित भारतीय प्रवासियोंको हलफनामा देना होगा जो किसी भी अन्य प्रवासीसे प्रवासीके नाते नहीं लिया जायेगा। अतएव मेरा संघ विनम्र निवेदन करता है कि विधेयकपर आप अपनी अनुमति रोक लें और इस प्रकार मेरा संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है उसे उन तमाम तकलीफों, कष्टों और आत्मत्यागसे बचायें जो फिरसे आन्दोलन छिड़नेके फलस्वरूप समाजको झेलना पड़ेगा।[१]
अ० मु० काछलिया
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ
- ↑ १. इंडियन ओपिनियनके २१-६-१९१३ के अंक तार विस्तृत रूपमें प्रकाशित हुआ था। लॉर्ड ग्लैडस्टनने जून १७ को इसकी प्राप्ति स्वीकार की और एक प्रति अपने मन्त्रियोंको भेजी। लेकिन जरथुस्त्री अंजुमनकी ओरसे पारसी रुस्तमजीने जो तार दिया, उसके जवाब में गवर्नर जनरलने उन्हें सूचित किया कि मैं पिछले सप्ताह ही विधेयकपर अपनी सहमति दे चुका हूँ।