पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/१४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८१. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२४]

६. संक्रामक रोग : शीतला-१

बुखार आदि कुछ-एक बीमारियोंके सम्बन्धमें हम थोड़ी चर्चा कर चुके हैं। सभी बीमारियोंके विषयमें सूक्ष्म विवेचन करना इन प्रकरणोंका हेतु नहीं है। और जब समस्त रोगोंका, ज्यादातर, एक ही कारण माना जाता है और उन समस्त रोगोंका इलाज भी प्राय: एक सा ही गिना जाता है तो फिर प्रत्येक रोगपर जुदा- जुदा लिखनेकी आवश्यकता नहीं रह जाती। शीतला-जैसे संक्रामक रोगकी उत्पत्तिका भी हम एक ही कारण मानते हैं, अत: उसकी चर्चा भी भिन्न रूपसे करना जरूरी नहीं है; तो भी शीतलाके सम्बन्धमें एक प्रकरणको स्थान देना अनुचित नहीं होगा।

शीतलाके निकलनेपर हम बहुत भयभीत हो जाते हैं। उसको लेकर अनेक भ्रम प्रचलित हैं। हिन्दुस्तानमें तो शीतलाके लिए एक विशेष देवी ही प्रतिष्ठित है और इस रोगके हो जानेपर असंख्य लोग मनौतियाँ मानते हैं। इस रोगकी उत्पत्ति भी अन्य रोगोंकी तरह रक्त-दोषसे होती है और यह रक्त-दोष जठरके ज्वरसे प्रारम्भ होता है। शरीरमें भरा हुआ जहर शीतलाके जरिये बाहर निकलता है। यदि यह विचार ठीक है तो शीतलासे भयभीत होनेका कोई कारण नहीं। यदि यह रोग संक्रामक हो तो उन सभी लोगोंको, जो शीतलाके रोगीको स्पर्श करते रहते हैं, यह हो जाना चाहिए। पर हम देखते हैं कि ऐसा नहीं होता। अतः शीतलासे छूतका भय माननेकी आवश्यकता नहीं है। तथापि सावधानी तो रखनी ही चाहिए। शीतलाकी छूत लगती ही नहीं बिलकुल ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। जिसका शरीर उसकी छूतको ग्रहण करने योग्य हो गया है, ऐसा मनुष्य यदि शीतलाके रोगीका स्पर्श कर ले तो उसपर अवश्य ही रोगका संक्रमण हो जायेगा और इसीसे जहाँ-जहाँ शीतला निकलती है वहाँ अनेक लोग उसके शिकार बन जाते हैं। बीमारीके इस प्रकार संक्रामक होनेसे ही गौ-शीतलाका टीका लगाया जाता है और लोगोंको यह विश्वास दिलाया जाता है या बहकाया जाता है कि गौ-शीतलाका टीका लगावा लेनेसे शीतला अत्यन्त हलकी निकलती है और रोगका आक्रमण भी नहीं होता। शीतलाके टीकेका अर्थ इतना ही है कि गायके थनपर शीतलाकी पीब लगा दी जाती है। और जब थन पक उठता है तो इससे पीब लेकर चमड़ीके जरिये हमारे शरीरमें दाखिल करके हमारे शरीरपर शीतलाका दाना उठा दिया जाता है ताकि महाशीतलासे हमारा छुटकारा हो जाये। पहले यह माना जाता था कि इस प्रकार एक बार शीतलाका टीका लगवा लेनेसे मनुष्यको फिर शीतला नहीं निकलती। परन्तु अनुभवसे देखा गया है कि शीतलाका टीका लगवा देनेके बाद भी मनुष्य बहुत दिनों तक उससे मुक्त नहीं रह पाते। इससे यह निष्कर्ष निकला कि एक मुद्दतके बाद तो शीतलाका टीका पुनः लगवा ही लेना चाहिए। अब तो यह प्रथा-सी हो गई है कि जब-जब किसी इलाकेमें शीतलाका