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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बनाये उसमें यह ध्यान रखने के लिए बाध्य है कि मौजूदा अधिकारोंमें कोई परिवर्तन न किया जाये। उसने समझौतेकी इन दो बातोंमें से एक भी पूरी नहीं की है।

ऐसा प्रतीत होता है कि श्री हरकोर्ट भी इस खयालमें है कि विधेयकमें जो थोड़े-बहुत संशोधन किये गये है संघ-सरकारकी प्रेरणासे या न्याय करनेकी उसकी इच्छाके कारण हुए हैं। वस्तुतः ये संशोधन तो संसदके विरोधी दल द्वारा जबरदस्ती करवाये गये हैं। विरोधी दलका यह कार्य जितना प्रशंसनीय है उतना ही वह मन्त्रिमण्डलके लिए अप्रत्याशित भी। यदि विरोधी दल थोड़ा और मजबूत और दृढ़ होता तो संघ-सरकारकी अनिच्छाके बावजूद एक ऐसा कानून बन गया होता जिसमें १९११ के अस्थायी समझौतेको स्थायित्व प्राप्त हो जाता।

फिलहाल, अब यदि विधेयकपर शाही मंजूरी रोक नहीं ली जाती, और समाजको ताजा आश्वासन नहीं दिया जाता कि १९११ के समझौतेकी शतोंपर पूरी तरह अमल किया जायेगा, और विवाह-सम्बन्धी कठिनाई दूर की जायेगी, तो इस बार स्त्री-पुरुष दोनों ही सत्याग्रह करेंगे। सत्याग्रह आरम्भ होता है या नहीं, शायद इस तरफसे संघ-सरकार उदासीन है, परन्तु मैं इसे किसी समाजके नागरिक या राजनीतिक जीवनमें पैदा हो जानेवाली बुराइयोंका सर्वोत्तम इलाज मानता हूँ और मुझे विश्वास है कि यदि हम अपने प्रति सच्चे रहे, तो इसकी सफलता निश्चित है।

सरकारने अभी-अभी केवल स्त्रियोंपरसे ३ पौंडी कर हटा लेनका प्रस्ताव रखा है। इससे भारतीय समाजके प्रति उसकी निरन्तर शत्रुता और दुर्भावना असन्दिग्ध रूपसे व्यक्त होती है।

[अंग्रेजीसे]
केप आर्गस, १३-६-१९१३

८०. विधेयक

अब यह विधेयक किसी भी क्षण इस देशका कानून बन सकता है और सम्भव है कि पहली अगस्तसे भारतीय ऐसे कई अधिकारोंसे वंचित हो जायें जिनका वे अबतक उपभोग करते आये हैं। अबतक जो संशोधन पास हुए हैं उनके बारेमें, या विधेयकके पूरे प्रभावके बारेमें, निश्चयपूर्वक कुछ कहना सम्भव नहीं है। श्री डब्ल्यू० पी० श्नाइनरको, जिन्होंने हम लोगोंका पक्ष लेकर कठिन लड़ाई लड़ी, विवाह-सम्बन्धी संशोधनमें कुछ सुधार कराने में सफलता मिली, और श्री फिशरकी इस धमकीके बावजूद भी कि वे न केवल पंजीयनकी धारा वापस नहीं लेंगे, बल्कि यदि हम लोगोंने पूरे विधेयकको मंजूर नहीं किया तो सम्पूर्ण संशोधनको निकाल कर मूल मसविदेको ही रहने देंगे, पंजीयन सम्बन्धी अंश निकाल दिया गया जान पड़ता है। जबतक पूरा पाठ सामने नहीं आता तबतक हम यह तय नहीं कर सकते कि इस नई धाराका नवीनतम रूप कैसा है।

परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यदि वैवाहिक कठिनाई दूर हो गई हो तब भी विधेयकमें अन्य बहुत-सी बातें इतनी अपमानजनक है कि सत्याग्रहियोंको उनका प्रतिरोध करनेके लिए मजबूर होना पड़ेगा। मालूम पड़ता है कि विधेयकमें सर्वोच्च न्यायालयके