पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/१४

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आठ एकसे तीन-तीन महीनेके कारावासकी सजा सुनाई गई। अधिकारियोंकी संघर्षको बदनाम करने और उसमें फूट डालनेकी कोशिशके बावजूद संघर्ष जारी रहा । १७ अक्तूबरको न्यू कैसिलकी कोयला खानोंके भारतीय श्रमिकोंने तीन पौंडी करके विरोध में हड़ताल कर दी। उस हड़तालके साथ ही, संघर्षका नया और क्रान्तिकारी दौर शुरू हो गया। गांधीजीने हड़तालियोंसे कहा कि वे मालिकों द्वारा दी जानेवाली खुराक लेनेसे इनकार कर दें और या तो अपनेको गिरफ्तार करा दें या फिर फोक्स- रस्टकी सीमा की ओर प्रयाण करें। गांधीजीने खान-मालिकोंको पूरी बात समझानेके लिए उनकी सभा में भी भाषण किया । C संघर्षका तीसरा दौर " महान कूच " के साथ ६ नवम्बरको शुरू हुआ, जब अन्यायपूर्ण तीन- पौंडी करके विरोध में दो हजार से अधिक हड़तालियोंका एक शानदार जुलूस" उनके नेतृत्वमें ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हुआ । ७ और ११ नवम्बरके बीच गांधीजीको तीन बार गिरफ्तार किया गया और दो बार उनको जमानतपर रिहा किया गया। अन्तमें उनको डंडीमें कठोर परिश्रम सहित नौ महीनेके कारावास या ६० पौंड जुर्मानेकी सजा सुना दी गई। उन्होंने जेल जाना पसन्द किया । १४ नवम्बरको उन- पर दूसरा मुकदमा चलाया गया और अन्य अपराधोंके लिए तीन महीनेकी सजा दी गई। इस बीच हड़ताल कोयला खानोंसे बढ़कर रेल, चीनी साफ करनेकी फैक्टरियों, गोदी और निगम-कर्मचारियों तक फैल चुकी थी । ८ नवम्बरको ७,००० से ८,००० तक श्रमिकों के हड़तालमें शामिल होनेका समाचार था। अधिकारियोंने हिंसापूर्ण कार्र- वाई भी की और इसके फलस्वरूप, जैसा कि अनिवार्य था, विदेशों में जनमत सत्या- ग्रहियोंके पक्षमें जाग्रत हुआ । वाइसराय लॉर्ड हार्डिजने २९ नवम्बरको मद्रासमें भाषण करते हुए सत्याग्रहियोंके प्रति अपनी चिन्ता और सहानुभूति व्यक्त की । इसके बाद कालमें भारतीयोंकी समस्याके बारेमें सरकारकी नीतिमें कब क्या परिवर्तन आया, यह अधिकारियोंके पत्र-व्यवहार में, विशेषकर गवर्नर-जनरलकी ओरसे ब्रिटिश उपनिवेश-कार्यालयको भेजे गये गुप्त खरीतों में देखा जा सकता है। अधिकारियोंके साथ हुई गांधीजीकी कुछ भेंटोंका विवरण तो केवल उनमें ही मिलता है। गांधीजीके जेल जानेके बादका घटनाक्रम और वास्तवमें तो १८९४ से १९९४ तक दक्षिण आफ्रिका में चलनेवाले भारतीयोंके समूचे संघर्षका एक संक्षिप्त सिंहावलोकन दिसम्बर १९१४के 'इंडियन ओपिनियन ' के 'स्वर्ण अंक 'में प्रकाशित एक प्रामाणिक सम्पादकीय में मिलता है (देखिए परिशिष्ट २८) । इसमें जैसे घटना क्रम बतलाते हुए कहा गया है 'मद्रासमें लॉर्ड हार्डिजका वह प्रसिद्ध भाषण, जिसमें उन्होंने भारतीय जनमतके स्वरमें स्वर मिलाकर उसका समर्थन किया और फिर उनकी जांच आयोगकी माँग; लॉर्ड ऍम्टहिलकी समितिके उत्साहपूर्ण प्रयत्न; साम्राज्य सरकारका तत्परताके साथ हस्तक्षेप करना; भारतीय समाजकी भावनाका कोई खयाल न करते हुए एक ऐसे आयोगकी नियुक्ति जिसके सदस्य भारतीयोंको कतई सन्तुष्ट नहीं कर सकते थे; नेताओंकी रिहाई; जिनकी आयोगकी उपेक्षा करनेकी सलाह लगभग पूर्णतः स्वीकार कर ली गई; श्री ऐन्ड्रयूज और पियर्सनका आगमन और समझौतेके लिए उनका अद्भुत कार्य; हरबतसिंह