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पत्र: गो० कृ० गोखलेको


पढते आये है तो आपने देखा होगा कि कई वक्ताओंने आपके नामका बार-बार उपयोग किया और उससे ज्यादातर हमारा ही काम बना। निश्चय ही आपका यहाँ आना अनेक प्रकारसे लाभदायी सिद्ध होगा।

सिनेटम विधेयकका दूसरा वाचन हो गया है। सम्भव है, कुछ फेरफार किये गये हों। लेकिन मेरी समझमें अब डब्ल्यू० पी० माइनर वे सभी संशोधन मंजूर नहीं करा सकेंगे जो संघर्षका फिरसे छिड़ना रोकने के लिए आवश्यक है। शायद यह तो मैं आपको लिख ही चुका हूँ कि श्रीमती गांधी, श्रीमती डॉक्टर, छगनलालकी पत्नी और मगनलाल की पत्नी संघर्ष में सम्मिलित हो रही है। कृपया फिलहाल इसे अपने तक ही रखिए। बस्ती (फोनिक्स) से तो इस बार कई लोग सम्मिलित हो ही रहे हैं। यदि संघर्ष छिड़ा, और उसका छिड़ना लगभग निश्चित है, तो फिर कह नहीं सकता, मैं भारत कबतक वापस लौटूंगा।

पोलकने अपना दफ्तर खोल दिया है। मुझे रिचके खर्चकी कोई चिन्ता नहीं है और पोलक अपना खर्च जल्दी ही निकालने लगेंगे। लन्दन समितिको पिछले मार्च महीनेसे पैसा भेजना बन्द कर दिया गया है। इसलिए अब एकमात्र भार 'इंडियन ओपिनियन' का रह गया है और यदि संघर्ष फिर छिड़ा तो मेढके परिवारका पालन-पोषण भी करना होगा। इसके अलावा, केवल नैमित्तिक चालू खर्च रह जायेगा। मेढके[१] खर्चके लिए मैं दक्षिण आफ्रिकामें चन्दा माँगना पसन्द न करूंगा; किन्तु दूसरे खर्च या तो हमें यहाँसे निकालने होंगे या बन्द कर देने होंगे। मैं लन्दन समितिके लिए आपके हवालेकी जानेवाली रकम बराबर इकट्ठी कर रहा हूँ। आशा है आप नये सिरेसे उसका संगठन कर डालेंगे। समितिको तीन साल तक कायम रखने के लिए ६०० पौंड इकट्ठा करनेकी जरूरत है; यदि उसमें कुछ कमी रह गई तो हमारे मित्र रुस्तमजीने' उसे पूरा कर देनेका वचन दिया है। मेरा खयाल है कि दक्षिण आफ्रिकामे रुस्तमजीसे[२] अधिक विश्वसनीय कोई दूसरा व्यक्ति है ही नहीं। इस बातसे आपकी टोपी और छातेकी याद आ गई। आशा है, वे आपको सही-सलामत मिल गये होंगे।

कैलेनबैक कुछ दिनके लिए यहाँ आये हुए हैं।

आशा है, आपका स्वास्थ्य इस समय अच्छा होगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ९२७) से।

सौजन्य: सर्वेट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी।

  1. १. सत्याग्रही सुरेन्द्रराय मेद ।
  2. २. पारसी रुस्तमजी, नेटालके एक प्रमुख भारतीय व्यापारी और सत्याग्रही; देखिए खण्ड १, पृ॰ ३९५ भो।