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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऐसा करनेसे उग्रसे-उन आँव थोड़े ही समय में बन्द हो जायेगी और रोगीको हानि नहीं उठानी पड़ेगी। मरोड़ होते समय यदि बहुत तीव्र ऐंठन होती हो तो एक बोतलमें खूब गरम पानी डालकर या गरम ईंटसे पेटपर सेंक करनेसे ऐंठन बन्द हो जायेगी। रोगीको इन रोगोंमें भी खुली हवाकी उसी प्रकार जरूरत है जैसे हमेशा होती है।

कब्जके लिए नीचे लिखा मेवा विशेष रूपसे लाभदायक माना जाता है : अंजीर, फ्रेंच प्लम्स, मस्काटेल रेसिन, मोटी दाख, काली मुनक्का, सन्तरा और ताजे अंगूर। इन सबका यह अर्थ कदापि नहीं है कि भूख न हो तो भी मेवे खाये ही जायें। ऐंठनके समय और मुंह खराब हो, ऐसे समय ये मेवे भी नुकसान ही पहुँचायेंगे। उपर्युक्त कथनका इतना ही अर्थ है कि जब भी खानेकी जरूरत महसूस हो तो, उस समय, ये ऊपर गिनाये मेवे विशेष लाभदायक होंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ७-६-१९१३

७७. पत्र: गो० कृ० गोखलेको

फीनिक्स
नेटाल
जून ७, .१९१३

प्रिय श्री गोखले,

आपका कोई भी पत्र क्यों नहीं आया सो मैं भलीभाँति समझ गया। इसका कारण जानकर मुझे बहुत दुःख हुआ और इच्छा हुई कि शुश्रूषाके लिए मैं आपके साथ होता। यही खुशीकी बात है कि अब आपकी तबीयत पहलेसे बहुत अच्छी है। भारतके सब लोग तो आपको पूरी तरह कभी नहीं समझ पायेंगे, और चूंकि आपकी -सी कार्य-शक्ति पाना बहुत कठिन है, लोगोंके मनमें ईर्ष्या जाग उठती है। मैं तो यही कहूँगा कि आप उस ओरसे उदासीन रहें।

आपके नीम हकीमकी हैसियतसे मैं निश्चय ही आपके स्वास्थ्य, भोजन इत्यादिके बारेमें सभी कुछ जानना चाहता हूँ।

मैं जानता हूँ कि पोलक आपको नियमित रूपसे पत्र लिखते रहे हैं। इसलिए मैं आपको लम्बा पत्र लिखकर कष्ट नहीं देना चाहता। यदि समय मिले तो आप इस हफ्तेका 'इंडियन ओपिनियन' जरूर देख लें। उसमें श्री फिशरके और मेरे बीचका पूरा पत्र-व्यवहार प्रकाशित हुआ है। यूनियनिस्ट दलके सदस्योंने पहले तो बड़े जोशसे टक्कर ली; किन्तु अन्तमें वे ढीले पड़ गये। फिशरने यह कहा कि साम्राज्य सरकारने इस कानूनको ज्योंका-त्यों मंजूर कर लिया है और लोगोंने इसपर विश्वास कर लिया। मुझे भरोसा नहीं होता कि वह किसी भी दशामें विधेयकके प्रारूपको ज्योंका-त्यों मंजूर कर सकती है। यदि आप 'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित उस बहसको ध्यानसे