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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२३]


बवासीर हो जाती है। किसी-किसीको दस्त भी होने लगता है। यदि दस्त बहुत और बार-बार तथा थोड़े परिमाणमें हो तो इसे संग्रहणी कहा जाता है। किसी-किसीको मरोड़ होने लगता है और रक्त गिरने लगता है तथा पेट में दर्द रहता है।

इनमें से कोई भी रोग हो, रोगीकी भूख कम हो जाती है। शरीर निस्तेज हो जाता है। ताकत नहीं रहती, श्वासमें बदबू आने लगती है, जीभ खराब रहती है। कइयोंका सिर दर्द करने करता है और कइयोंको अन्य दर्द भी उठ जाते हैं। कब्ज एक ऐसा सामान्य रोग है कि इसके लिए अनेक दवाएँ और फैकियाँ बनी हैं। मदर सीगल्स सिरप, फूट सॉल्ट आदि दवाओंका मुख्य कार्य ही कब्जको दूर करना है। और चूंकि इनसे कब्ज दूर होता प्रतीत होता है, अतः लोग ऐसी दवाओंके पीछे भागते रहते हैं। साधारण हकीम या डॉक्टर भी यही कहेगा कि कब्ज आदि रोगोंका मूल कारण बदहजमी है और वह यह भी बतलायेगा कि यदि बदहजमीके कारणोंको दूर किया जाये तो रोग शान्त हो जायेगा। इन लोगों में जो लोग ईमानदार हैं वे साफ यही कहेंगे कि हमारे मरीज अपनी बुरी आदतोंको छोड़ना नहीं चाहते और रोगको दूर करना चाहते हैं, इसीलिए हमें ये फॅकियाँ, चूर्ण और काढ़े आदि देने पड़ते हैं। आजकल जो विज्ञापन निकलते है उनमें तो यह भी ऐलान किया जाता है कि हमारी दवा खानेवालेको खुराकमें या अपनी आदतोंमें किसी प्रकारको तब्दीली करनेकी आवश्यकता नहीं होगी। केवल हमारी दवाके सेवनसे ही वे स्वस्थ हो जायेंगे। पर इन प्रकरणोंके पाठककी समझमें इतना तो आ ही गया होगा कि इस प्रकारके विज्ञापन धोखेधड़ीसे भरे होते हैं। जुलाब आदिका परिणाम तो सदैव बुरा ही होता है। हल्केसे-हल्का जुलाब भी कब्जको भले ही दूर करे, शरीरमें दूसरे जहर उत्पन्न करता है। मनुष्य यदि अपनी कुटेवोंको जारी ही रखे तो उसे कब्ज, संग्रहणी आदि रोग न रहा हो तो कोई-न-कोई नया रोग अवश्य हो जायेगा।

अब हम ऊपर लिखे रोगोंके इलाजकी बात करें। पहला उपाय तो यह है कि इन सभी रोगोंके रोगीको अपनी खुराक घटानी चाहिए। उसे बहुत भारी खुराक यानी ज्यादा घी, शकर या उबाले हुए गाढे दूध आदिके पकवान नहीं लेने चाहिए। यदि उसे बीड़ी, शराब, भांग आदिके व्यसन हों तो उन्हें छोड़ना ही चाहिए। मैदेकी रोटी खानेकी आदत हो तो उसे छोड़ दे। चाय, काफी और कोको भी छोड़ दे। खुराकमें ताजा मेवा प्रधान रूपसे लेना चाहिए और उसके साथ शुद्ध जैतूनके तेलका सेवन करना चाहिए।

उपचारके प्रारम्भमें ही छत्तीस घंटेका उपवास करना चाहिए। इस बीच भी और इसके बाद भी सोते समय मिट्टीकी पट्टी पेड़पर रखनी चाहिए और दिनमें एक-दो बार क्यूनी बाथ लेना चाहिए। रोज कमसे-कम एकसे दो घंटे तक घूमना चाहिए। इतना करनेवालेको तुरन्त लाभ दृष्टिगोचर होगा, इसमें जरा भी शंका नहीं है। ऐसे उपचारसे भयंकर दस्त, सख्त कब्ज, तीव्र मरोड़ और पुरानी तथा उग्र बवासीर-जैसे रोग दूर होते हुए मैंने देखे है। बवासीरके सम्बन्धमें इतना कहना जरूरी है कि जबतक खून आता रहे, खुराक बिलकुल न ली जाये और जब कुछ लेनेकी तवीयत हो तब उबले हुए जलमें सन्तरेका रस मिलाकर और छानकर लिया जाये।